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शरीर को जीतना या शरीर द्वारा जीते जाना : निर्णय आपका

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      पुष्पा गुप्ता

     दूसरे तट को जानेवाले ओ साहसी यात्री, प्रसन्न रह। कामदेव की कानाफूसी पर कान मत दे। अनंत आकाश में जो लुभानेवाली शक्तियां हैं, जो दुष्टभाव वाली आत्माएं हैं, जो द्वेषी ल्हामयी हैं, उनसे दूर ही रह।

       पहली बात :

   शरीर को मालकियत से उतारें। इसका मतलब यह नहीं कि शरीर के दुश्मन हो जाएं, उसको नष्ट कर डालें। इसका मतलब यह है कि उसे, जहां वह होना चाहिए-सेवक-वहां उसे बिठा दें। वह वहीं ही योग्य है, और वहां उसकी बड़ी उपयोगिता है।

    एक बार आप उसके मालिक हो जाएं, तो शरीर से आप वह काम ले सकते हैं, जिसके बिना आत्मा की कोई यात्रा नहीं हो सकती। शरीर फिर अदभुत यंत्र है।

        अभी तक जगत में मनुष्य के शरीर जैसा अदभुत यंत्र कोई भी नहीं है। बहुत सूक्ष्‍म, बहुत विराट, सब उसमें समाहित है। और उसमें अनंत शक्तियां प्रसुप्त हैं, जो सब जाग जाएं, तो आपके जीवन में अनंत द्वार खुल जाते हैं।

    आप स्वयं एक छोटे-मोटे विश्व हैं। लेकिन वह मालिक हो शरीर, तो आप सिर्फ गुलाम हैं। और हालत ऐसी है, जैसे बैलगाड़ी आगे हो और बैल पीछे बंधे हों, तो कहीं कोई जाना नहीं होता। आप बहुत तड़पते हैं, चिल्लाते हैं, कि कहीं जाना जरूरी है, यात्रा करनी जरूरी है, मंजिल पर पहुंचना चाहिए, समय नष्ट हो रहा है।

    पर काम आप ऐसा कर रहे हैं कि समय नष्ट होगा ही। बैल पीछे बंधे हैं, गाड़ी आगे बंधी है; धक्का-मुक्की में गाड़ी उलटी टूटती है, बैल परेशान होते हैं, कहीं कोई यात्रा नहीं होती है।

आत्मा पीछे बंधी है शरीर के, तो यात्रा नहीं हो सकती है।

     आत्मा आगे होनी चाहिए, शरीर पीछे होना चाहिए, तो फिर बड़ी यात्रा हो सकती है। और शरीर अदभुत वाहन है। उसका उपयोग किया जा सकता है।

         दूसरी बात :

    यह खयाल रखना जरूरी है कि इस नियंत्रण के प्रयोग में उदासी न पकड़ ले; चित्त प्रसन्न रहे। क्योंकि शरीर की जो सबसे गहरी तरकीब है, वह आपको उदास करके पराजित करने की है।

    अगर आप भूखे हैं और उपवास किया है तो आपका मन उदास हो जाएगा। अगर उपवासा आदमी उदास है, तो समझना कि उपवास व्यर्थ हो गया। इससे बेहतर था, वह भोजन कर लेता और प्रसन्न रहता। अगर उपवासा आदमी उदास है, तो समझना बात व्यर्थ हो गई, बात खतम हो गई।

      क्योंकि उदासी शरीर की तरकीब है आपसे बदला लेने की। और शरीर आपको थका डालेगा। और उदासी कितने दिन तक झेलिएगा?

         इसलिए जब शरीर पर नियंत्रण करना हो, तो दूसरा सूत्र खयाल रखना कि शरीर उदासी की लहरें भेजेगा; शरीर सब तरफ से आपको उदास करने की कोशिश करेगा। आप उदास मत होना, आप प्रसन्न रहना। अगर आप प्रसन्नता कायम रख सकें, तो अदभुत अनुभव होते हैं।

    आपको पता नहीं है, इसलिए बड़ी अड़चनें होती हैं। शरीर के भीतर शक्ति के तीन तल हैं। एक तल तो रोज मर रहा है काम के लिए, वह बहुत छोटा-सा है। रोज जो आपको काम करने पड़ते हैं -उठना- बैठना, चलना, दफ्तर जाना, वह सब काम के लिए, एक छोटा सा स्रोत आपके शरीर के ऊपर है। यह जल्दी थक जाता है, चुक जाता है। क्योंकि इसकी पूंजी बहुत कम है।

         समझें ऐसा कि आप दिन भर के थके-मांदे लौटे हैं। और आप कहते हैं कि बिलकुल पड़ जाऊं और सो जाऊं। अब एक शब्द भी बोलने की इच्छा नहीं है, हाथ भी हिलाने की इच्छा नहीं है, बस सो जाना चाहता हूं। तभी अचानक घर में आग लग जाए; आपकी सब उदासी खो जाती है, थकान खो जाती है।

     आप एकदम सचेत हो जाते हैं, शक्ति का स्रोत दौड़ पड़ता है। यह शक्ति कहां से आई- यह आपमें नहीं थी अभी तक? यह दूसरा स्रोत है शरीर का, इमरजेन्सी का। तात्कालिक जरूरत जब आ जाए, तो शरीर में नया स्रोत काम शुरू कर देता है; शक्ति दौड़ जाती है। अब आप रात भर आग बुझाने में लग सकते हैं और थकान नहीं आएगी।

         इससे भी गहरा एक स्रोत है, जो अनंत स्रोत है। वह तभी उपलब्ध होता है, जब दोनों स्रोत चुक जाते हैं, और आप डरते नहीं, और प्रसन्नतापूर्वक और भी आगे श्रम करते चले जाते हैं। तब एक घड़ी आती है कि तीसरा स्रोत फूटता है, जो कि कास्मिक है, जो कि जागतिक है। वह आपका नहीं है; कहना चाहिए कि आपके नीचे छिपा हुआ जो चैतन्य का सागर है, उसका है।

      जिस दिन वह टूट पड़ता है, उस दिन फिर चुकने का कोई उपाय नहीं। उस दिन फिर आप शाश्वत जीवन के मालिक हो गए।

       ध्यान के नाम पर लोग कहते हैं कि थक जाता है शरीर। थकने दो, ध्यान करो. फिकर मत करो, चलते जाओ। एक ही खयाल रखना कि प्रसन्नता से, उदासी से नहीं। जल्दी ही दूसरी पर्त टूट जाएगी, वह जल्दी टूट जाती है।

     अगर दूसरी पर्त टूट जाती है, तब वे ध्यान के बाद थकान अनुभव नहीं करते, ताजगी अनुभव करते हैं। जब यह दूसरी पर्त भी थका डालेंगे आप तब एक और तीसरी पर्त टूटेगी। उसके बाद आपके पास शाश्वत ऊर्जा है, उसके बाद अनंत जीवन आपका है, उसके बाद आप वहां आ गए, जहां कोई चीज कभी नहीं चुकती। प्रसन्नता का सहारा लेकर चलेंगे, तो ही इतने गहरे उतर पाएंगे। उदास हो गए, तो आप वापिस लौट जाएंगे।

       इसलिए बहुत गहरे में आप इसको पकड़ लें कि धर्म की साधना आपका आह्लाद हो, आनंद हो। आनंद अंत में नहीं, पहले चरण पर भी हो। आखीर में मिलेगा, ऐसा नहीं है, आज भी हो।

   उत्सवपूर्वक उस तरफ बढ़ें तो शरीर को आप जीत लेंगे। क्योंकि शरीर की जो बुनियादी तरकीब है, उसके विपरीत आपने एंटीडोट, विपरीत औषधि तैयार कर ली। शरीर उदास करके आपको पराजित कर देता है। प्रसन्न रहकर आप शरीर के मालिक हो सकते हैं।

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