अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कर्ज बढा, ब्रांडेड सामान की बिक्री गांवों में बढी

Share

सनत जैन/

केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट जारी की गई है। उसमें बताया गया है, जीडीपी में बचत का हिस्सा 50 सालों में सबसे कम रहा है। 2011 से 2022 के बीच बचत घटती जा रही है। वहीं प्रति व्यक्ति जीडीपी आय मैं 140 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले 5 वर्षों में लोगों की बचत सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। बचत में शेयर मार्केट, बैंक के बचत खाते, एफडी, शेयर मार्केट, सोना, म्युचुअल फंड इत्यादि को भी शामिल किया गया है। 2022 के वित्तीय वर्ष में 17.1 लाख करोड रुपए की बचत थी। जो 2022-23 में घटकर 14.02 लाख करोड रुपए रह गई है। सकल जीडीपी में बचत का हिस्सा केवल 5.3 फ़ीसदी बचा है। जो पिछले 50 वर्षों में सबसे कम है। लोगों के खर्च बढ़ रहे हैं, लेकिन बचत कम होती जा रही है।

रिपोर्ट में कर्ज आसानी से मिलने के कारण सामाजिक मानसिकता में यह परिवर्तन देखने को मिल रहा है। साल भर में लोगों का घरेलू कर्ज 54 फ़ीसदी बढ़ गया है। 2021-22 में घरेलू खर्च 7.69 लाख करोड रुपए था। जो 2022-23 में बढ़कर 11.88 लाख करोड रुपए हो गया है। पिछले वर्ष की तुलना में 54 फ़ीसदी घरेलू कर्ज बढा है। बैंकों से क्रेडिट कार्ड से और गैर बैंकिंग कंपनियों से यह कर्ज लिया गया है। 2012 के बाद से लोगों पर घरेलू कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण बाजारों में ब्रांडेड सामान की बिक्री लगातार बढ़ रही है।

ग्रामीण अंचल अब शहरी क्षेत्र को मात देते हुए देख रहे हैं। जनवरी 24 से मार्च 24 की तिमाही में ग्रामीण क्षेत्र की मांग 7.6 फ़ीसदी बढ़ गई है। वहीं शहरी क्षेत्र में 5.7 फ़ीसदी मांग घट गई है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में ब्रांडेड वस्तुओं को लेकर यह परिवर्तन सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है। सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जो रिपोर्ट जारी की गई है। वह बड़ी चिंता जनक है। बचत 50 वर्षों में सबसे कम हो गई है इसका मतलब है कि अब भारतीय नागरिक अपनी हर जरूरत के लिए कर्ज और सरकार के ऊपर निर्भर होते चले जा रहे हैं। ग्रामीण अंचलों की सामाजिक व्यवस्था और भौतिक संसाधनों के प्रति जो आकर्षण बढ़ रहा है। उसके कारण ग्रामीण अंचल जो अभी तक कर्ज के बहुत ज्यादा दबाव में नहीं थे ग्रामीण अंचलों के परिवार भी अब कर्ज के बोझ से दबते चले जा रहे हैं। पिछले 10 वर्षों से केंद्र में मोदी सरकार है।

कर्ज लेकर खर्च की प्रवृत्ति को बढ़ाने का काम किया गया है। इसका असर जीडीपी और कर वसूली के लिए सरकार के लिए उपयुक्त माना जा सकता है। लेकिन जिस तरह से आम आदमी कर्ज के बोझ से दबता चला जा रहा है। महंगाई बढ़ती चली जा रही है। आय की तुलना में खर्च ज्यादा हो रहा है। ऐसी स्थिति में कर्ज की भी एक सीमा है। पिछले वर्षों में कर्ज के कारण डिफाल्टर होने वाले लोगों की संख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ती चली जा रही है। कर्ज नहीं चुका पाने के कारण, आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। इसका असर अपराधों पर भी पड़ रहा है। जीडीपी में आर्थिक विकास होने के बाद भी इसका लाभ आम आदमी तक नहीं पहुंच रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं खाने-पीने की वस्तुयें महंगी हो रही हैं। जिसके कारण भारत में असमानता बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही है। आने वाले समय में निम्न और मध्यम वर्ग के लिए यह एक खतरे की घंटी है। वहीं सरकार के लिए भी इसे खतरे की घंटी माना जा सकता है। जब एक बड़ी आबादी सरकार के ऊपर निर्भर होगी, तो इसका असर राजनीति और सरकारों के अस्तित्व पर भी पडना तय माना जा रहा है।

कर्ज लेकर घी पीने की प्रवृत्ति आम नागरिकों के साथ-साथ सरकार के बीच की एक प्रवृत्ति बन गई है। एक स्तर तक कर्ज लेने को जायज ठहराया जा सकता है। लेकिन जब इसे चुका नहीं पाते हैं, तो इसका ठीक उलटा असर होता है। इसका असर अभी दिखना शुरू हो गया है। आने वाले सालों में यह निम्न एवं मध्यम वर्ग के साथ-साथ सरकार के लिए भी कर्ज एक मुसीबत बनने जा रहा है। इस तथ्य को भी ध्यान में रखने की जरूरत है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया बचत के आधार पर किया जा सकता है कर्ज के आधार पर नहीं। कर्ज लेने पर ब्याज का बोझ भी बढ़ता है। किस्त और ब्याज की तुलना में यदि आय नहीं बढ़ती है, तो वह आम नागरिकों के जन-जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। इस ओर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें