अग्नि आलोक
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भूतकाल

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धीरे-धीरे बहुत से
चेहरे आलोप हो रहे हैं
देखता था जिनको बचपन से।

धीरे-धीरे वो सब आवाज़े
खामोश हो रही है
सुनता था जिनको लड़कपन से।

धीरे-धीरे वो सब
अपने-पराये खोते जा रहें है
मिलता था जिनको बाल्यावस्था से।

धीरे-धीरे वो सब गाँव
शहर में बदलते जा रहे हैं
घूमता था जिनकी पगडंडियों के किनारे।

धीरे-धीरे वो सब मानव
दानव में बदलते जा रहे हैं
समझता था जिनको विश्व का महामानव।

डॉ.राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश (युवा कवि लेखक)
(हिंदी अध्यापक)
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail.com

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