जन्म : 10 अगस्त 1894, मृत्यु : 24 जून 1980
निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिष्ठित वक्ता, लेखक एवं कुशल राजनीतिज्ञ वराहगिरि वेंकट गिरी को
वीवी गिरी के नाम से जाना जाता है। वह वकील बनना चाहते थे लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान
अपने आप को रोक नहीं पाए और देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। भारत के चौथे राष्ट्रपति
वीवी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रपति और पूर्णकालिक राष्ट्रपति दोनों बने। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान
भारत रत्न से सम्मानित वीवी गिरी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान, श्रम अधिकारों
और सामाजिक समानता की आवाज उठाने के लिए किया जाता है याद……
वराहगिरी वेंकट गिरी का जन्म 10 अगस्त 1894 को ओडिशा के बरहमपुर जिले में एक तेलगु भाषी
परिवार में हुआ था। उनके पिता वकील और मां सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने प्राथमिक और
माध्यमिक शिक्षा बरहमपुर में ही पूरी की। इसके बाद 1913 में वे कानून की पढ़ाई करने के लिए
यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन गए। इसी साल महात्मा गांधी से प्रभावित होकर वे समझ गए कि
आजादी की लड़ाई कानून की पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है। यह जानने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई
से ज्यादा महत्व स्वतंत्रता संघर्ष को दिया और पूर्ण रूप से भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े।
जब वे भारत वापस आए तो मजदूर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे।
मजदूर आंदोलन में सक्रिय भूमिका के चलते वीवी गिरी ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष
बने। इसके बाद 1926 और 1942 में वे दो बार भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वीवी
गिरी दो बार 1937 और 1946 में मद्रास प्रेसिडेंसी का श्रम और उद्योग मंत्रालय संभाला। 1942 में
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सक्रियता के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। बावजूद इसके वे सक्रिय
बने रहे। देश को आजादी मिलने के बाद वीवी गिरी को श्रीलंका का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया।
वह 1952 में पहली लोकसभा के लिए चुने गये। 1952 से लेकर 1954 तक उन्होंने श्रम मंत्रालय
संभाला। 1957 से 1967 के दौरान वीवी गिरी उत्तर प्रदेश, केरल और कर्नाटक के राज्यपाल रहे। 1967
में वे देश के उप राष्ट्रपति चुने गए। 3 मई 1969 को तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के
बाद उन्हें कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। 1969 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में दिलचस्प मुकाबला हुआ।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी के सदस्यों से अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट
देने की अपील की। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को अधिकृत उम्मीदवार
बनाया था। हालांकि, रेड्डी चुनाव हार गए और वीवी गिरी 50.2 फीसदी वोट पाकर देश के चौथे और
पहले निर्दलीय राष्ट्रपति चुने गए। वे 1974 तक इस पद पर रहे। किताब लेखन में भी वीवी गिरी की
गहरी रूचि थी। उनके द्वारा लिखी हुई किताबें अत्यधिक लोकप्रिय रही हैं।
1974 में, भारतीय डाक और तार विभाग ने उनके सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
1975 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए उन्हें देश के
सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। दिल का दौरा पड़ने के कारण 24
जून 1980 को चेन्नई में उनका निधन हो गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पिछले वर्ष 10 अगस्त को
राष्ट्रपति भवन में पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। n