अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कविता और रंगों की कदमताल:हैदर रज़ा

Share

–    सुसंस्कृति परिहार

    सैयद हैदर रजा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार तो थे ही, कविता के प्रति उनका अटूट राग है उनके मानस में एक संस्कारवान कवि मौजूद रहा वह चित्रों में उतर आता था उनके चित्र एक अलग तरह की कविता के मानिंद हैं। कविता की किताब उनके हाथ में जब आती थी तो वे उसे आद्योपांत पढ़ते थे। उनकी डायरी में कबीर, मीर , ग़ालिब, निराला, महादेवी, शेरी भोपाली के साथ-साथ केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेई और गिरधर राठी से लेकर पवन करण तक की कविताएं मौजूद रहीं।

           रजा साहब अपनी रचना प्रक्रिया  के बारे में कहते थे कि- ‘सिर्फ विचार से काम नहीं बनता उसके लिए साधना और एकाग्रता बहुत जरूरी है रचना से तादात्म्य भी जरूरी है लेकिन कभी-कभी तनाव का ऐसा मुकाम भी आता है, जब विचार प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है और सहज बुद्धि हावी हो जाती है। तब मैं खुद से पूछना भी छोड़ देता हूं कि मैं क्या कर रहा हूं?बस विचार आते जाते हैं मैं उन्हें कैनवास पर उतारता जाता हूं।’  वस्तुत: उनकी मान्यता है कि कविता में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। कलाकर्म समय मांगता है मानवीय अनुभव सिर्फ आंख से देखना नहीं बल्कि यह महसूस करना भी है जो आंख की पुतली से परे भी दिखाई देता है।जैसे हम उष्णता महसूस कर सकते हैं, आंधी का झोंका झेल सकते हैं, ताजा हवा की गंध, जंगल का संगीत, चिड़ियों की चहचहाहट सुन सकते हैं। नंगी आंखों से देखने की क्षमता से आगे बढ़कर हम तमाम अनुभवों को मन के भीतर तक महसूस कर सकते हैं वही संपूर्ण अनुभूति है। किसी संवेदनशील व्यक्ति के लिए और चित्रकार एवं कलाकार की क्षमता सामान्य से थोड़ी अधिक होती है। मनुष्य और सकल ब्रह्मांड के आंतरिक संबंध को मानते हुए रज़ा ने कहा था कि–‘ बड़ी बात है इसे चित्र कविता वाली कला में लाना। चित्रकार जीवन या कलाकृतियों के आसपास की बात कर पाता है स्वाद, सुगंध, पीड़ा, आनंद समझाएं नहीं जाते ना इसका तो अनुभव ही किया जाता है।वे मानते हैं आंख बंद कर भी चित्र बनाए जा सकते हैं चित्र आंखों से नहीं मन से, हृदय से, तमाम सोचने की शक्ति से भी बनने चाहिए एक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हम प्रेम करते हैं, प्रेम को समझते हैं तब जाकर प्रेम के ऊपर एक अच्छी कविता लिख पाते हैं वही बात चित्रों के लिए है।’ वे कहते हैं  मानवीय जीवन के उच्चतर पक्ष को प्रमाणित चित्रों में प्रतिबिंबित किया जा सकता है अपने  चित्रों के बारे में उनका कहना है  मैंने भारतीय परंपरा के उन नौ रसों की दिशा में अपनी चित्र कृतियों का विकास किया है ।     

          अशोक बाजपेई जैसे वरिष्ठ कवि और रजा एक दूसरे के पूरक रहे हैं। बाजपेई रजा के चित्रों पर कविता लिखते हैं तो रजा वाजपेई की कविता का चित्र पेश करते हैं दोनों एक दूसरे के साथ बरसों तक कदमताल करते रहे हैं। रजा की एक कृति पर उनकी कविता है-  

‘आओ जैसे अंधेरा आता है

 अंधेरे के पास 

जैसे जल मिलता है

 जल में 

जैसे रोशनी घुलती है

 रोशनी से।’

       यहां रजा के रंग को अशोक शब्द की तरह अपने विन्यास के लिए विकल्प होते दिखाई देते हैं। 

       कवि ध्रुव शुक्ल को रजा की ‘सूर्य नमस्कार’ कृति देखकर केदारनाथ सिंह याद आते हैं-

 आप विश्वास करें 

मैं कविता नहीं कर रहा हूं

 सिर्फ आग की ओर 

इशारा कर रहा हूं 

      ध्रुव शुक्ल ने भी रजा के चित्रों पर कई कविताएं लिखी हैं उनका मानना है कि रजा के चित्रों पर जब मैंने कविताएं लिखीं तो मुझे उनमें भी अलौकिक मां नजर आई जो कि स्वयं अपने ही आल्हाद की गोद में बैठी है। वे लिखते हैं —

‘उनके चित्रों में दिखती

 व्याकुल पुरातन मां

 शिशु के साथ’

 कभी उन्हें रजा के चित्र रंगों की अक्षत से भरी पूजा की थाली जैसे लगते हैं वे लिखते हैं –

‘पुष्पों की पंखुड़ियों से भरी

 पूजा की थाली जैसे ये चित्र

 रंगों के उद्गम पर खड़े 

प्रार्थना मग्न

 बेहद के मैदान

मैं बिखर रही है 

उनके हाथों से छिटकी 

रंगों की अक्षत’

 निश्चित ही, रजा चित्रकला एवं काव्य के समन्वयक हैं उनका वजूद कविता से सराबोर है। यही वजह है कि उनके चित्र कवियों की कविताओं में भी उभरे हैं चित्र और कविता की कदमताल ही रजा की अपनी एक अलग पहचान है। 

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें