माहवारी का दर्द

राधा गोस्वामी
उम्र-17
गरुड़, उत्तराखंड
चलो अपने माहवारी वाले दिन की कहानी बताती हूं,
दर्द में रोती बिलखती उन पांच दिनों का राज बताती हूं,
कहने को तो हर महीने आ जाते हैं ये,
पर हर बार कम या ज्यादा दर्द साथ लाते हैं ये,
कामजोरी, चिड़चिड़ापन तो कभी रुला जाते हैं ये,
हर समय दर्द में ना रोना सिखा जाते हैं ये,
कुछ लोगों को ये दर्द हमारा ढोंग लगता है,
पर वो क्या जाने यह दर्द का पहाड़ है कितना बड़ा,
जूझ रही हूं माहवारी से तो क्या मैं अपवित्र कहलाऊंगी?
बंद करो ये उंगली उठाना, नही तो मैं अपनी पर आ जाउंगी।।
मत बांधो जंजीरों में

आयुषी कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार
छोड़ दो मुझे, अब जीना है,
मत बांधो मुझे जंजीरों में,
ऊंचे गगन में अब उड़ना है,
क्यों छीनते हो मुझसे मेरी आजादी?
नहीं बंधना मुझे किसी रिश्तो में,
कल उठकर कुछ बनना है मुझे,
देश और समाज को बदलना है मुझे,
छोड़ दो खुद से जीने दो मुझे,
कदम से कदम मिलाकर चलना है मुझे,
नहीं रहना अब किसी चहारदीवारी में,
पक्षी बन कर उड़ जाना है मुझे।।
मेरी ज़िंदगी के रंग

पूजा गोस्वामी
रोलियाना, उत्तराखंड
मेरा चरित्र और मेरा चेहरा,
समाज मेरी हैसियत क्यों बताता?
मेरे अंदर किताबी कीड़े का गुण नहीं,
मेरे लंबे बाल मेरे गुणों को है दर्शाता,
छोटा कद, रंग सांवला और गोल शरीर,
बस इतने में मेरा भविष्य दिख जाता?
इंसान हम भी हैं, गलतियां सभी से होती हैं,
मगर तानों का पिटारा हमारे लिए खुल जाता?
मायका हो या हो ससुराल वाला घर,
लड़कियों की इच्छा क्यों मारी जाती?
रिश्ते निभाने है तो चुप रहना होगा,
गलती न हो फिर भी अपमान सहना होगा,
मगर ये अपमान सिर्फ लड़कियाँ ही क्यों सुने?
बच्चे सफल हो जाएं तो पापा का नाम,
और गलतियाँ करे तो फिर माँ बदनाम,
इस दोहरे चरित्र को बेनकाब करना होगा,
लड़कियों को भी बराबरी का हक देना होगा॥
समाज करता है

पल्लवी भारती
मुजफ्फरपुर, बिहार
तेरी मेरी बुराइयां हर समाज करता है,
और तु मुझे खुदगर्ज इंसान कहता है?
मैं तुझे और तू मुझे बस इल्जाम देते हैं,
मगर कोई हम दोनों को सलाह नहीं देता है,
रिश्ते, प्यार, संस्कार सब कलयुग का मोह है,
राह भटकने के बाद कोई पनाह नहीं देता है,
साथ होने में और साथ देने में कुछ फर्क होता है,
इन मतलबी चेहरों के सामने दर्द बेअसर होता है,
तेरी मेरी बुराइयां हर समाज करता है,
और तु मुझे खुदगर्ज इंसान कहता है?
चरखा फीचर्स