नारी हूँ मैं
शगुन कुमारी
पटना, बिहार
नारी हूँ मैं, जननी हूँ मैं,
अबला नहीं सबला हूँ मैं,
क्यों बनू मैं अब बेचारी?
अधिकार जानूंगी बारी बारी,
पढ़ लिखकर मैं बनूँगी महान,
तभी मिलेगा बराबर का सम्मान,
क्यों सदा पुरुष ही रहे उत्तम?
नारी तो है उससे भी सर्वोत्तम?
धरती से अंबर तक है नारी,
पहुँच रही है वह बारी बारी,
भारत देश तब बनेगा महान,
जब नारी शक्ति होगी इसकी शान,
नारी हूँ मैं, जननी हूँ मैं,
अबला नहीं सबला हूँ मैं॥
श्रृंगार हैं या हथकड़ियाँ?
अंजली आर्या
कक्षा-9
गरुड़, उत्तराखंड
ज़ेवर है या हथकड़ियां?
होता ये महिलाओं का श्रृंगार,
देख लो और सुन लो औरतों,
जिन्हें समझती हो तुम शृंगार,
तुम्हारे हाथों की हथकड़ियां हैं आज,
हाथ की चूड़ी और गले की माला,
ये सब हैं हथकड़ियों का ताला,
हाथ में कलम और जाना स्कूल,
ये है हथकड़ियों से मुक्ति का ताला,
पढ़ लिख कर तुम्हें आगे है बढ़ना,
ऐसी हथकड़ियों से मुक्त रहना॥
दुनिया में इसकी होती चर्चा
ऋचा कुमारी
शुभंकरपुर, मुजफ्फरपुर
हम उस राज्य के वासी हैं,
जहां उगते का करते सम्मान,
डूबते को भी करते प्रणाम,
विश्वास और निष्ठा के साथ हम,
जन-जन का चाहते कल्याण,
पहले अंधेरे का सफर करते,
फिर उजाले की तरफ बढ़ते,
यहां सिर्फ विहार ही नहीं है,
यहां प्रकृति भी करती है श्रृंगार,
ज्ञान-विज्ञान का भंडार यहां,
दुनिया में इसकी होती चर्चा,
वैशाली और नालंदा यहीं हैं,
बोधगया का वैभव भी यहां,
जनक नंदिनी सीता की धरती,
महावीर और बुद्ध की थाती,
मगध यहीं है, अंग यहीं है,
लिच्छवी का गणराज्य यहीं है,
गंगा-कोसी की बहती धारा,
और गांधी की है यह कर्मस्थली,
जहां इतिहास रोज़ दुहराती है,
हम उसी राज्य के वासी हैं।।
क्या लिखूं इसके बारे में?
महिमा जोशी
बैसानी, उत्तराखंड
आज मेरी कलम फिर लिखने चली,
और बोली, आज लिखूं तो क़्या लिखूं?
क़्या मैं उस नारी के बारे में लिखूं?
जिसे पुरुष एहसान तले दबाता है,
या आज लिख दूं उस बेटी के लिए,
जिसे बाप कंधों का बोझ समझता है,
या लिखूं समाज के उन हैवानों पर,
जो लड़कियों को जीने नहीं देते हैं,
क़्या उस घर की चीख पर लिखूं?
जहां से मदद की गुहारे आती हैं,
जहां घर की इज़्ज़त के नाम पर,
औरत दिन रात ज़ुल्म सहती है,
अपने साथ गलत होने पर भी,
किस्मत के नाम पर चुप रहती है,
या लिखूं उसके धैर्य के बारे में?
जहां सारे अधिकार होने पर भी,
एक नारी आवाज़ नहीं उठा पाती है।।
चरखा फीचर्स
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