अग्नि आलोक
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समझदार बहू……!

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सुराज सम्राट

पापा आपका फोन है , कौन है बेटी ? राधेश्याम जी अपनी बहू दामिनी से पूछते हैं। वो लवली दी का फोन आया है । 

हाँ लवली बेटा , आज तुझे कैसे अपने पापा की याद आ गई  , 

ओफ्फ हो पापा ! आप जानते ही ना कि जॉब के कारण व्यस्त रहती हूँ , क्या करूँ –  घर बाहर दोनों ही संभालना है और विवेक भी मेरी घर में मदद नहीं करते ? अब आप ही बताइए,  ऐसे में क्या फोन करूँ आपको ? दामिनी है ही आपको देखने सुनने के लिए,  बेटी को कौन पूछता है ? बहू के आगे  कभी मेरी भी सुन लिया करें आप ! अपनी बेटी की बात को सुन दंग रह गए,।

राधेश्याम जी लवली के रग रग से वाकिफ थे , स्वार्थपरता भरी पड़ी है लवली में ,  हमेशा से ही लवली अपनी छोटी भाभी को जली कटी सुनाती और जलील करतीं । कहते हैं कि घर में स्त्री  ना हो तो घर भूत का डेरा लगता है । राधेश्याम जी की पत्नी रीना असमय ही अकाल मृत्यु की शिकार हो गई थीं । लवली की शादी भी अकेले ही राधेश्याम जी ने की और बेटा राज की शादी भी ।

अब बताओ भी,  किसलिए अपने पापा को फोन की हो ?

दरअसल नवीन को अमेरिका जाना है आगे के पढ़ाई के लिए, 

चालीस लाख कम पड़ रहे ,  बाकी साठ का इंतजाम कर लिया है हमने ! पापा आप चालीस का व्यवस्था कर दीजिए ना ,  फोन पर लवली प्रेम से विनती स्वर में बोल रही और बेटी के विनययुक्त लहजे से चालाकी की बू आ  रही , फिरभी बोले — ठीक है कोशिश करता हूँ  अपने नाती के लिए,  लेकिन जँवाई बाबू को आसानी से लोन मिल सकता है इसलिए उन्हें बोलो कि वो कल हमसे मिलने आ जाएं । पर पापा , आपके अकाउंट में है ना पैसे ! वो तो ठीक है पर उस पैसे पर मेरे पोते  का भी हक है और अभी पोती की शादी भी करनी है । जानती ही हो कि तुम्हारा भाई प्राइवेट नौकरी करता है , बिचारा सब कुछ तो देख रहा है , मेरी दवाई , बिजली बिल,  पर्व त्योहार का खर्च भी देखता है । लेकिन आपका पेंशन भी तो उसका परिवार ही ना खा रहा है , मेरी शादी के दो साल तक तीज त्योहार में साड़ी व मिठाई भेजा गया , उसके बाद बीस साल तक कुछ भी नहीं आया ? पापा आप तो पराया कर दिए ना !

अरे बेटा ! पचासी साल के बूढ़े बाप से क्या उम्मीद कर रही हो , पेंशन से भी अपेक्षा मत करो , बहुत बोल चुकी , कल आओ दामाद जी के साथ,   बाकी बात करते  हैं ।झल्ला कर फोन राधेश्याम जी ने रख दिया । सब सुन रही दामिनी अपनी ननद की बातों से आहत हो गई,  हे भगवान! दीदी क्यों नहीं समझती कि हम सब कैसे घर चला रहे हैं हम ही जानते हैं । घर भी बहुत ही पुराना हो चुका था , लवली दी के शादी के बाद से मरम्मत व पेंट पोचारा भी नहीं पाया था और दामिनी सोच सोचकर परेशान हो रही थी कि कल लवली दीदी कलह करने आएगी और पापा को दुखी करेगी । अब दीदी को समझाना पड़ेगा कि पापा से इस तरह से ना बोला करें ? 

दोपहर को ही लवली – विवेक आ धमके हैं , शर्बत पानी पीने के पश्चात खाना पीना का दौर चला है । उसके बाद लवली अपने रंग में आ गई,  पापा क्या सोचे आप , चालीस लाख का इंतजाम कैसे करेंगे ? लवली के सवाल पर विवेक भी अपने ससुर की ओर ताकने लगे हैं। देख बेटा तुम अपने मायके की स्थिति से वाकिफ ही हो और तुम्हारी तीन भतीजियाँ हैं जिनकी शादी करनी है , इसलिए बैंक में रखे पैसे को हाथ भी नहीं लगाते हमलोग ! ऐसा है ना बेटा कि तुम भी ग्रामीण पदाधिकारी हो और दामाद जी बैंक में है तो सरलता से बैंक तुमदोनों को कर्ज दे सकती है और ब्याज भी कम लगेगा क्योंकि बैंक में विवेक जी काम करते हैं ।

पापा का कहा सुन लवली तमक गई है , तंज कसते हुए बोली , ऐसा है ना पापा कि मैं भी इस घर की दावेदार हूँ और आप दो कट्ठा जमीन पर बने घर को दो बराबर बराबर हिस्सों में अलग कर दीजिए या फिर एक कट्ठा जमीन का पैसा दे दीजिए।  लवली की बात सुनकर पापा माथा पकड़कर बैठ गए,  दामिनी को लगा कि कहीं कुछ हो ना जाए,  ससुर ही परिवार के कर्ता धर्ता हैं । लवली दी को मान सम्मान देना मतलब अपनी ही बेइज्जती कराने के जैसा है । भैंस के आगे बीन बजाने से कोई लाभ नही ! वही हाल लवली का है , शातिरपना और लालचीपना के आचरण को ओढ़े ।

दीदी ! आपका हिस्सा भी जरूर मिलेगा , जब आप अपनी ननद से संबंध ठीक कर लीजियेगा । आपकी ननद रिंकी भी इसी शहर में  यही पड़ोस में  रहती है ना , आपने उसके साथ क्या किया है , ना कभी उसे फोन करती है आप ? ना उसे अपने मायके आने देती हैं और विवेक जीजू से बहन को मिलने नहीं देती है  ? बल्कि रिंकी के द्वारा भेजी गई राखी को फेंक देती हैं , कहती हैं कि आपकी बहन ही राखी नहीं भेजती ? आपके कारस्तानी की कहानी रिंकी रो रो कर सुना चुकी है मुझे । आप नहीं चाहती कि अपने मायके आए ताकि वो अपने बेटी होने के दावेदारी ना जतलाए, है ना लवली दी । 

दामिनी के तंज भरी बातों लवली का चेहरा फक्क पड़ गया , काटों तो खून नहीं ! अब तो सारी कारगुजारी पति और पापा के समक्ष आ गई थी ।

चुप हो जा तू, लवली बोली ।

दीदी , आप चाहती है ना कि हम सब खुश रहें , तो सबसे पहले अपनी ननद से संबंध को स्वस्थ बनाईये , रिंकी अपने भइया के लिए तड़पती है । जहाँ तक आपके हक की बात है हमने कभी आपको पलटकर जवाब नहीं दिया ना अवहेलना की है ? फिर दीदी इतना जहर क्यूं ? आप तो संपन्न हैं हमलोग से अधिक हैसियत है आपकी , फिर भी दीदी आप ! कहते कहते दामिनी फफक फफक कर रो पड़ी है । राधेश्याम जी अपनी बहू के समझदारी से गदगद हो गए,  एक मेरा  खून है जो नासमझ है और बहू तो मेरा खून ना होते हुए भी मेरे मान सम्मान को लेकर चलती है  । कितना भाग्यवान हूँ , इतनी अच्छी समझदार बहू मिली है , सोचते हुए राधेश्याम जी की आँखें डबडबा गई हैं ।

विवेक खड़े हो जाते हैं, 

जा रहा हूँ अपनी बहन से मिलने ,

आना है तो आ जाना , नहीं तो ऑटो से घर लौट जाना ।

माफी चाहता हूँ पापा , आपकी अपनी बेटी ना मायके की है ना ससुराल की है । आज तक मेरी आँखों में इसने झूठ फरेब का पर्दा डालने हुए थी , आज सब कुछ साफ साफ दिख रहा है , कहते हुए विवेक अपने ससुर के समक्ष हाथ जोड़ दिए हैं।

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