जूली सचदेवा
यह क़िस्सा मुझे अबू तालिब ने सुनाया।
किसी ख़ान की रियासत में बहुत-से कवि रहते थे। वे गाँव-गाँव घूमते और अपने गीत गाते। उनमें से कोई वायलिन बजाता, कोई खंजड़ी, कोई चोंगूर और कोई जुरना। ख़ान को जब अपने काम-काजों और बीवियों से फुरसत मिलती, तो वह शौक़ से उनके गीत सुनता।
एक दिन उसने एक ऐसा गीत सुना, जिसमें ख़ान की क्रूरता, अन्याय और लालच का बखान किया गया था। ख़ान आग-बबूला हो उठा। उसने हुक़्म दिया कि ऐसा विद्रोह भरा गीत रचने वाले कवि को पकड़कर उसके महल में लाया जाये। गीतकार का पता नहीं लग सका। तब वज़ीरों और नौकरों-चाकरों को सभी कवियों को पकड़ लाने का आदेश दिया गया। ख़ान के टुकड़खोर शिकारी कुत्तों की तरह सभी गाँवों, रास्तों, पहाड़ी पगडण्डियों और सुनसान दर्रों में जा पहुँचे। उन्होंने सभी गीत रचने और गाने वालों को पकड़ लिया और महल की काल-कोठरियों में लाकर बन्द कर दिया। सुबह को ख़ान सभी बन्दी कवियों के पास जाकर बोला –
“अब तुममें से हरेक मुझे एक गीत गाकर सुनाये।”
सभी कवि बारी-बारी से ख़ान की समझदारी, उसके उदार दिल, उसकी सुन्दर बीवियों, उसकी ताक़त , उसकी बड़ाई और ख्याति के गीत गाने लगे। उन्होंने यह गाया कि पृथ्वी पर ऐसा महान और न्यायपूर्ण ख़ान कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
ख़ान एक के बाद एक कवि को छोड़ने का आदेश देता गया। तीन कवि रह गये, जिन्होंने कुछ भी नहीं गाया। उन उन तीनों को फिर से कोठरियों में बन्द कर दिया गया और सभी ने यह सोचा कि ख़ान उनके बारे में भूल गया है। | मगर तीन महीने बाद ख़ान फिर से इन बन्दी कवियों के पास आया।
“तो अब तुममें से हरेक मुझे कोई गीत सुनाये।”
उन तीनों कवियों में से एक फ़ौरन ख़ान, उसकी समझदारी, उदार दिल, सुन्दर बीवियों, उसकी बड़ाई और ख्याति के बारे में गाने लगा। यह भी गाया कि पृथ्वी पर कभी कोई ऐसा महान ख़ान नहीं हुआ।
इस कवि को भी छोड़ दिया गया । उन दो को जो कुछ भी गाने को तैयार नहीं हुए, मैदान में पहले से तैयार किये गये अलाव के पास ले जाया गया।
“अभी तुम्हें आग की नज़र कर दिया जायेगा,” ख़ान ने कहा। ”आख़िरी बार तुमसे यह कहता हूँ कि अपना कोई गीत सुनाओ।”
उन दो में से एक की हिम्मत टूट गयी और उसने ख़ान, उसकी अक्लमन्दी, उदार दिल, सुन्दर बीवियों, उसकी ताक़त, बड़ाई और ख्याति के बारे में गीत गाना शुरू कर दिया। उसने गाया कि दुनिया में ऐसा महान और न्यायपूर्ण ख़ान कभी नहीं हुआ।
इस कवि को भी छोड़ दिया गया। बस, एक वही ज़िद्दी बाक़ी रह गया, जो कुछ भी गाना नहीं चाहता था ।
“उसे खम्भे के साथ बाँधकर आग जला दो!” ख़ान ने हुक्म दिया।
खम्भे के साथ बँधा हुआ कवि अचानक ख़ान की क्रूरता, अन्याय और लालच के बारे में वही गीत गाने लगा, जिससे यह सारा मामला शुरू हुआ था।
जल्दी से इसे खोलकर आग से नीचे उतारो!” ख़ान चिल्ला उठा! “मैं अपने मुल्क के अकेले असली शायर से हाथ नहीं धोना चाहता!!”
”ऐसे समझदार और नेकदिल ख़ान तो शायद ही कहीं होंगे,” अबूतालिब ने यह क़िस्सा ख़त्म करते हुए कहा, “मगर ऐसे कवि भी बहुत नहीं होंगे।”
(चेतना विकास मिशन)