अग्नि आलोक
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कहानी- चंडी

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          दिव्या गुप्ता, दिल्ली 

     सुबह के सात बजे हैं, सुहासिनी नहा रही है। नवरात्र के पहले दिन बहुत काम होता है।वह सुबह पांच बजे की जगी है। आठ कमरों के दो मंजिला मकान का झाड़ू पोछा करने मे दो घंटे लग गये हैं। वह आंगन मे नहा रही है।यहाँ ऐसा कौन है जिससे परदा करना है जो बाथरूम मे जाये। ताल जैसे मकान मे एक वह और दूसरी उसकी बूढी अंधी सास रहती हैं।देह पर  अभी दो लोटा पानी ही डाली थी कि काल बेल की आवाज सुनायीं दी। सास दरवाजा खोल नहीं सकती इसलिए शरीर पर कपड़े डाल उसे दरवाजे पर जाना पड़ा। 

     ” कौन है ” उसने पूछा मगर तभी काल बेल दोबारा बज उठी। उसने दरवाजा खोल दिया। राजेश था, वह कुत्सित मुस्कान बिखेरने के साथ  सुहासिनी के नितम्बों पर अपने हाथों का दंश मारते भीतर चला गया। धीरे से “कमीना” कह दरवाजा बंद कर वह नहाने बाथरूम मे चली आई। बाथरूम मे जा वह सावर खोल उसके नीचे खड़ी हो गयी। ठण्डे पानी का फौवारा उसके मन की अग्नि को बुझाने के बजाय और बढाये जा रहा था। 

      राजेश सुहासिनी का ननदोई है। ऐसा कमीना इंसान अपनी जिंदगी मे इसने नहीं देखा। इसके ही कारण सुहासिनी का सुनहरा संसार उजड़ गया। पहले पति मरा फिर बेटे बहू तिरस्कार करके चले गये। 

     आज वह अपनी बूढी असहाय सास के साथ अपनी अभिशप्त जिंदगी बिता रही है। आज से पंद्रह दिन पहले सुहासिनी इस आदमी से डरती थी, मगर आज इससे बदला लेने को आतुर है। 

     आज से पंद्रह दिन पहले उसकी ननद का फोन आया था। पूरे पांच साल के बाद उसने फोन किया था। अभी कोई बात हो तबतक उसकी ननद ने कहा फोन काटियेगा मत, लगता है राजेश आया है, फाटक खटखटा रहा है। खोलकर बात करती हूँ। 

    “क्यूँ री कमीनी फाटक खोलने मे इतनी देर क्यों लगा, किस यार के संग रंगरेलियां मना रही थी? ” फोन कटा नहीं था, यह राजेश की आवाज थी। 

     “अपने ही जैसा नीच सभी को समझते हो? मैं तुम्हारे जैसी नीच नहीं हूँ। “

     “जबान लड़ाती है कमीनी, मार डालूँगा तुम्हें। “

   “मार ही डाल हत्यारे,  तुमने मेरे भाई को झूठा वीडियो दिखाकर आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया। तूं उसी वीडियो को दिखा मेरी भौजाई की अस्मत के साथ खेलता रहा। उसी वीडियो को दिखा उसके बेटे बहू को उससे दूर कर दिया क्योंकि वह अब तुम्हारी बात नहीं मान रही थी। 

     अरे कमीने यह सब बातें मैं जान गयी हूँ। तुमने मेरे भैया भाभी के सुहागरात का वीडियो बनाया, बाद मे उसकी एडिटिंग कर भैया की जगह किसी और का चेहरा लगाया। मेरे पास वह दोनों वीडियो आ गये हैं। मैं सुहासिनी भाभी को तुम्हारे वीडियो सौंपकर तुम्हारा सर्वनाश कराऊंगी। “

     ” कमीनी कहीं की, यह सब करने के लिए तुम्हें अब मैं जिंदा रहने दूंगा तब ना” उसके बाद कुछ छीना झपटी गूं गां की आवाज आई फिर कोई आवाज नहीं आई। दो तीन दिन तक प्रयास करने के बावजूद फिर ननद से बात नहीं हुई।

     अपनी सोच मे डूबी वह ना जाने कबतक बाथरूम मे बंद रहती। एकाएक कमली कमली पुकार करते सास के रोने की आवाज सुनाई दी। कपड़े बदल वह झट से सास के पास गयी। कमली की मृत्यु का समाचार देने आया था वह। सारी बात सुहासिनी की समझ मे आ गयी। 

   ‌‌‌‌” राजेश के खाने के लिए कुछ बना दो, तुम ब्रत हो मेरी तो कमली की मृत्यु की सुन भूख ही उड़ गयी” सुहासिनी की सास सिसकते हुए बोली। 

    ” मुझे भी भूख नहीं है, मैं तो बस यह खबर देने और आप सब से मिलने चला आया। सास के अंधेपन और उसकी मजबूरी का उसने फिर फायदा उठा लिया। मन ही मन नागिन की तरह सुहासिनी फुफकार उठी। “ठीक है माँ जी रोटी सब्जी बना देती हूँ” कहकर वह वहाँ से किचन मे चली आई। 

    “मैं रोटी सब्जी खाने नहीं आया हूँ, मुझे गोस्त चाहिए गरम गोस्त। ” ऐसा कह सुहासिनी को जबरदस्ती गले लगा वह सास के पास चला गया। 

    “माँ जी मैं जरा अपने दोस्तों से मिलने जा रहा हूँ, शाम को आऊंगा। मेरा खाना गरम गरम तैयार रहना चाहिए, बहुत दिन हो गये गरमागरम खाये। अपने द्विअर्थी संबाद सुनाकर वह बाहर चला गया। 

  सुहासिनी के जी मे आया कि जहर पी ले।जिस दिन उसके मुंह पर तमाचे लगा उसके बहू बेटे घर छोड़कर गये थे वह जहर ले आई थी। मगर पी नहीं सकी। आज उसी जहर से इस राक्षस का वध करूंगी,, ऐसा मन मे ठान वह दोबारा नहाने चली गई। राजेश के छूने मात्र से उसका तन मन अपवित्र हो गया था। 

     रात को वह जब माँ की आरती कर रही थी तब राजेश वापस आया था। दिन की पूजा मे सुहासिनी ने लाल साड़ी पहना था। शाम को उसे उतार कर काली साड़ी पहन ली थी। सुहासिनी को देख उसने अपनी ऊंगलियों से कुत्सित इसारा किया। सुहासिनी मुस्कुरा उठी, राजेश जैसे दुष्ट राक्षस का वध करने से पहले उसे मदहोश करना जरूरी था। 

   ” जल्दी से आ जाओ तुम्हारे गोरे बदन पर लिपटी इस काली साड़ी से मुझे इतनी जलन हो रही है कि मैं इसे जल्द जल्द तुम्हारे तन से उतार फेंकना चाहता हूँ।”

     ” तुम्हारी तबियत तो ठीक है न राजेश, कैसा लग रहा है तुमको? “

     ” ठीक तो है, थोड़ी सी पेट मे जलन सी लग रही है। ऐसा क्यों पूछ रही हो? “

     “कोई बात नहीं, यह बताओ यह कौन सी दवा है? मुझे खांसी सी लग रही है। “

     “यह तो जहर है, हटाओ फेंको इसे। यहाँ क्यों लाई हो? “

    “इसके सेवन के कितने देर के बाद आदमी मर जाता है? “

     “पंद्रह मिनट मे आदमी मर जाता है, मगर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? “

    “इसलिए कि तुमको खाना खाए तेरह मिनट हो गये, मैंने एक पूरी शीशी तुम्हारे खाने मे मिलाया था। अब दो ही मिनट बचे हैं, दवा नकली तो नहीं है? “

    “क्यों क्यों मिलाया था तुमने, मेरा हृदय फटा जा रहा है, जल्दी बताओ?” ऐसा कह वह अपना सीना दबाये चीखने छटपटाने लगा। 

     सुहासिनी अट्टहास कर बिस्तर पर चढ गयी, अपना एक पैर उसके सीने पर रख जहर की शीशी को तलवार की लहराते हुए बोली” इसलिए कि तुमने मेरे ही सुहागरात का वीडियो बनाया। इसलिए कि उस वीडियो की एडिटिंग कर उसे दिखाकर तुमने मेरे पति को आत्महत्या के लिए मजबूर किया। इसलिए कि तुमने मुझे विधवा बनाने के बाद भी बारबार लूटा। इसलिए कि तुमने मेरे बेटे बहू को वही वीडियो दिखाकर मेरे बहू बेटे को मुझसे दूर कर दिया। और इसलिए कि तूने मेरी ननद को कत्ल किया।”

     ” बोलता क्यों नहीं रे पापी।हैं ,तूं तो एक झूठ से मर गया, जहर तो मैं खाने मे मिला ही नहीं सकी। अरे कमीने शीशी का ढक्कन खोलते ही मेरे हाथ ऐसे कांपे की शीशी मेरे हाथों से छूट गयी और सारा जहर जमीन पर गिर गया। कितना बुजदिल निकला रे निर्दयी, अपनी पर आई तो तुम्हारा हृदय ही बैठ गया।” राजेश के खुले मुंह मे थूक कर वह बिस्तर से नीचे उतर आई। 

        “आ बेटी आ मेरे पास बैठ, आज तुमने मेरा कलेजा ठण्डा कर दिया। तूं क्या समझती है मैं सचमुच की अंधी हो गई थी? नहीं बेटी मैं सब देख रही थी। अपने परिवार पर हो रहे इस अत्याचार को देखकर मुझे जीने की इक्षा नहीं थी। मैं यह भी नहीं चाहती थी कि तूं निर्दोष होने के बाद भी मुझसे नजर चुराये। इसीलिए अंधी बन इस राक्षस के वध हेतु माँ जगदम्बा के अवतार की प्रतिक्षा कर रही थी। आज मैंने तुम्हारे ही रूप मे माँ चण्डिके का दर्शन कर लिया। अब मेरी इक्षा पूरी हुई चलती हूँ।”

    सबेरे  दो लाश दाहसंस्कार के लिए जा रही थी। एक हृदयाघात से मरे राजेश की दुसरी एक दुखियारी की जिसके प्राण पखेरू बेटी दामाद की मृत्यु की खबर सुनकर एकाएक उड़ गए थे। (चेतना विकास मिशन).

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