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कहानी : भ्रूण

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             पुष्पा गुप्ता 

    सेठ हर गोविन्द अब घर वापस जा रहे थे। रात के दस बज चुके थे। बहन के बेटी का विवाह था जिससे वे दो दिन बहन के यहाँ व्यस्त थे। पिछले दिन कन्यादान हेतु स्वयं भी व्रत रखा था और आज एकादशी होने के कारण फिर व्रत थे। भूख का एहसास होते ही गाड़ी बगल में लगाकर रोक दिया। बगल बैठी पत्नी ने गाड़ी रोकने का कराण जब तक जानना चाहा तबतक सेठ जी ने घर पर बेटे को फोन लगा दिया था। फोन बहू ने उठाया था-“हां पापा,बताएं !”

“बेटा, रोहित कहां गया..?”

“वे तो सो गये पापा ।”

“ओह..! बेटा, मैं कह रहा हूँ कि हम घर आ रहे हैं ।अभी एक घण्टे में पहुँच जाएंगे। कल कन्यादान के सिलसिले में व्रत था और आज एकादशी व्रत है। यहाँ शादी विवाह का घर था। सभी लोग व्यस्त थे। फलाहार ठीक से हो नही पाया। तो कुछ बनाकर रखना,हम पहुँच रहे हैं अभी।” सेठ जी एक सांस में कहते चले गये जबकि बगल बैठी पत्नी अचम्भित थी। भोजन या खाने को लेकर इतने व्यग्र ये कभी नही हुये थे।तभी उधर से बहू की आवाज ने और चौंकाया-

“पापा, पहले बताना चाहिए था। घर में न फल हैं न कुछ और जिससे फलाहार बना सकूं। ये भी सो गये हैं। नहीं तो बगल के किराना वाले शर्मा अंकल के यहाँ से मंगवा ही लेती।”

“कोई बात नहीं बेटा। अब कल ही खायेंगे।” कहकर सेठ जी दुखी मन से फोन रखते हुए श्रीमती जी की तरफ देखते हुए बोले-“रोहित बहुत जल्दी सो गया आज !”

“श्रीमती जी ने अपनी फेसबुक वाल सेठ जी की तरफ कर दिया जहां रोहित न केवल आनलाइन दिख रहा था बल्कि बाकायदा अपनी पोस्ट पर मित्रों की टिप्पणियों का जवाब भी दे रहा था।

सेठ जी ने फिर गाड़ी को गियर में डाला और चल पड़े चुपचाप। दोनों बेटियों को औपचारिक रूप से इण्टर करवा कर ब्याह दिया था जबकि बेटों की मंहगी पढ़ाई करवाकर ऑफिसर बनाया था। जब कोई बेटी बेटों के विषय में पूछता तो बहुत गर्व से बताते -” बेटियों का क्या है..इण्टर करवाकर अच्छे घरों में ब्याह दिया है। अब अगर उनके घर वाले चाहेंगे तो आगे लिखा-पढ़ा देंगे। जबकि बेटों को मैने ऑफिसर बना दिया है। गाँव जवांर में रुतबा है,और क्या चाहिए ।”

यही सब सोचते हुये सेठ जी घर पहुँच गये थे। गाड़ी की आवाज सुनकर छोटी बेटी ने दरवाजा खोला तो सेठ-सेठानी दोनों चौंक पड़े-“तू कब आयी अपने घर से..?” दोनों लोगों ने एकसाथ पूछा तो बेटी मुस्करा कर बोली-

“पहले चलो हाथ मुह धुलकर आओ फलाहार करो,फिर सब बताती हूँ ।”

सेठ-सेठानी एक दूसरे को देखकर मुस्काए फिर हाथ मुह धोने चले गये। तबतक बेटी, बड़े करीने से कूटू के आंटे की पूड़ी और घी में फ्राई किए हुए आलू प्लेट में लगाकर उनके कमरे में आ गयी थी। सेठ-सेठानी फ्रेश होकर जैसे अपने कमरे में आये,बेटी बोली-“आप लोग खाओ तबतक मैं चाय लेकर आती हूँ।”

सेठ ने उसे चाय के लिये मना करते हुए कहा -“पहले तू बैठ और ये बता कि कब आयी तू और जब घर में कुछ था नहीं तो यह पूड़ी आलू बना कैसे ?” सेठ जी सब एक साथ जान लेना चाहते थे।

बेटी मुस्करायी,फिर बोली-“भाभी फिर उम्मीद से हैं। एक बेटी उन्हें पहले से है ही तो मम्मी ने ही मुझसे कहा था एक दिन, कि तू चला आ और अपने ननद के पैथालाजी सेण्टर पर अपनी भाभी का भ्रूण चेक करवा दे। चूंकि भ्रूण का परीक्षण कानूनन अपराध है तो अलग कोई करेगा नहीं। रही बात फलाहार की तो जब आप भाभी से फोन पर बात कर रहे थे तो भाभी के कमरे का टीवी आन होने के कारण उन्होंने अपने फोन को स्पीकर पर कर लिया हुआ था, जिससे मैने बगल के कमरे में होते हुए भी आप दोनों की सब बातों को सुन लिया था।”

“फिर?”

“फिर क्या..! जब आप लोगों की बात हो रही थी तब मैं फेसबुक पर थी..बगल के किराना वाले वाले शर्मा अंकल भी आनलाइन थे..मैने उन्हें तुरंत इनबाक्स किया और वे अपने छोटे बेटे के हाथ सारा सामान भेजवा दिये थे।”

“बेटा आनलाइन तो रोहित भी था उस समय लेकिन बहू ने कहा कि सो गये हैं।” फिर पत्नी की तरफ देखते हुए बोले-“अब भी भ्रूण चेक कराओगी लड़के की चाहत में ?”

      सेठानी के पास कोई जवाब नही था और वे सर झुकाए बिल्कुल शान्त बैठी रह गयीं थीं।

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