अग्नि आलोक
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कहानी : घर ने कहा 

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          प्रखर अरोड़ा 

मै अभी मैं 20 साल का हूँ. तब मैं 60 वर्ष का हो गया था. बरसों से अपने परिवार की अच्छे से देखभाल करने में व्यस्त रहा था , पर अब मेरे बच्चे बड़े हो गए थे और वो सब अपने कामों में व्यस्त हो गए थे और मैं अकेला अपनी आराम कुर्सी पर बैठा हुआ ज़िंदगी के बीते लम्हों को , पल पल करके याद कर रहा था। 

     तभी मेरी पत्नी ने मुझ से पूछा था, “अगर कहो तो , तुम्हारे लिए एक कप चाय और बना दूं ” तब मैंने उसकी ओर बहुत ध्यान से देखा था और मुझे अहसास हुआ कि ज़िंदगी की दौड़ धूप को झेलते झेलते , अब वो भी मुझे कुछ थकी थकी सी दिखाई दे रही थी।

     तभी अचानक मुझे अपने गांव के घर का ध्यान आ गया और साथ ही क्षण भर में ही , मां का चेहरा आंखों के सामने आ गया , जो मुझ से अक्सर कहती थी ” तुम्हारी तबियत तो ठीक हैं न , तुम्हारे लिए गर्म रोटी बना दूं ” और मां की याद आते ही , मेरा मन कुछ भारी हो गया था और मेरी आंखों में क्षण भर के लिए , नमकीन पानी लहराया था।

     मैने अपने घर की खिड़की से देखा बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही थी और मैने उसी पल फैसला किया कि मैं आज ही अपने गांव वाले घर को देखने जाऊंगा। अपने परिवार की जरूरतों को देखते हुए हम शहर की भीड़ भाड़ वाले स्थान पर रह रहे थे , जहां पर आसपास गहमागहमी से भरी छोटी छोटी गलियाँ थी और उन गलियों में , लोगों की भीड़ थी , पर कोई भी किसी को नमस्ते कहने से अधिक जानता नही था और शायद यह हर शहर की एक कड़वी सच्चाई थी।

       गांव जाने का ख्याल आते ही , मैने बहुत जल्दी से अपने कपड़े बदले थे और बारिश को देखते हुए , अपने साथ एक छाता भी उठा लिया था और मुझे यूं जल्दी से तैयार होता देख कर , मेरी पत्नी ने मुझ से हैरान होकर पूछा था ” आप जल्दी जल्दी तैयार होकर कहां जा रहे हैं , बाहर बारिश हो रही है ” तब मैंने अपनी पत्नी की ओर ध्यान से देखा था और उसको बहुत प्यार से कहा था ” एक काम याद आ गया है , तुम्हें वापिस आने पर बताऊंगा ” और अपनी पत्नी को सोचता छोड़ कर , मैं बहुत तेज़ी से घर से निकला था और अब मुझे गांव जाने वाली बस में बैठना था और उस बस स्टाप से हर आधे घंटे के अंतराल पर गांव के लिए बस निकलती थी और मेरा गांव शहर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर ही था।

     बस में बैठते ही , मैने अपना छाता बंद कर लिया था , पर बाहर अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी और उस समय बस में , बस चलने से पहले लोगों के आने जाने का बहुत शोर था , पर उस पल मैं अपने ख्यालों में , अपने घर पहुंच चुका था और उस पल मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ चुकी थी और मेरे लिए वह पल सुख चैन के पल थे और उन लम्हों में , मुझे कहीं भी पहुंचने की कोई जल्दी नही थी और शायद मैं भीतर से इस बात से बहुत खुश था कि मैं बरसों बाद अपने घर वापिस लौट रहा था।

      उस पल मेरे पास फुरसत ही फुरसत थी और रिटायर्ड होने के बाद , मुझे इतना आराम था कि किसी के पास दो घड़ी की फुरसत भी नहीं थी कि कोई मुझ से प्यार से पूछे कि ” भई तुम कैसे हो ” और इन्हीं ख्यालों में खोए हुए , मुझे पता ही नही चला कि वक्त कैसे बीत गया था और बस के कंडेक्टर की आवाज़ सुनकर मेरा ध्यान टूटा था ” साहब आपका स्टाप आ गया ” और उस पल मैं अपने हाथों में छाता पकड़े मैं बस से नीचे उतर गया था।  जहां पर बस ने मुझे छोड़ा था , उस पक्की सड़क से 15 मिनट की दूरी पर , मेरा घर था।

     मेरे पिता जी एक किसान थे और उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके , उस घर को बनाया था। हमारे परिवार में , हम तीन बहन भाई थे , सबसे बड़ी मेरी बहन नीलम थी जो अब एक बैंक अधिकारी थी और उससे छोटे , मेरे बड़े भाई सुकेश थे जो कलकत्ता के एक कालेज में प्रोफेसर थे और मैं उस घर में सबसे छोटा सदस्य ” सत्य ” था और मैं एक केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल था और अपने घर में सबसे छोटा होने की वजह से , मां सबसे अधिक लाड प्यार मुझ से ही करती थी। 

     अब इस बात को 40 वर्ष बीत चुके थे , मेरी बहन नीलाम शादी होने के बाद , इस गांव के घर से बहुत दूर चली गई थी और भाई सुकेश कलकत्ता में , एक कालेज में प्रोफेसर थे और सब अपने परिवार में सुख से थे। हम सब भाई बहन , किसी विवाह समारोह में या किसी त्योहार के अवसर पर एक दूसरे से मिलते थे और अपने परिवार की सुख दुख की बातें सांझा कर लेते थे।हम तीनो बहन भाइयों में , आपस में बहुत प्रेम था और उस पल मैं मन ही मन में , अपने घर के सब सदस्यों को याद कर रहा था और परिवार के सब सदस्यों का चेहरा बार बार , मेरी आंखों के सामने आ रहा था और इन्हीं सुखद विचारों के बीच में , मैं कब घर पहुंच गया था , इसका बात का मुझे पता तक नहीं चला था। 

      गांव के उस छोटे से घर के आंगन में अब भी वृक्ष ज्यूं के त्यूं ही खड़े थे , जो मुझे मेरे बचपन की याद दिला रहे थे। मैने देखा कि हमारे गांव के घर के पास ही , एक नया घर बन रहा था और उसमे कुछ मजदूर काम कर रहे थे। 

मैने कुछ सोचते हुए अपने घर के दरवाज़े का ताला खोला था और फिर भीतर प्रवेश किया था और घर के भीतर भी , अभी तक बिलकुल वैसा ही था , जैसे मैंने बरसों पहले देखा था , बस घर बंद रहने की वजह से , जगह जगह पर थोड़ी धूल जमा हो गई थी और दीवारों की हालत थोड़ी खस्ता हो चुकी थी। जबकि शहर से बहुत व्यस्तता के बावजूद कभी कभी मैं गांव के घर की साफ सफाई करवाने के लिए आ जाया करता था , पर मैं गांव के उस घर को उस दृष्टि से नही देख पाया था , जो मैं अब इस पल देख रहा था और महसूस कर रहा था।

          मैने अपना छाता वहीं पर , एक कोने में रख दिया था और घर की खिड़की पर खड़ा हो गया था , जहां से मुझे घर का सारा आंगन दिखाई दे रहा था।

     उसी पल उस खाली घर में एक आवाज़ गूंजी थी , जिस आवाज़ ने मुझे चौंका दिया था और मैं अपने आसपास सब तरफ देखने लगा था और मुझे लगा कि शायद यह मेरा सिर्फ भ्रम था।

    पर इस बीच एक बार फिर वही आवाज़ गूंजी और उस आवाज़ ने मुझ से कहा ” तुम बहुत बरसों बाद आए हो सत्य , तुम कैसे हो ” मैने बहुत हैरानी से अपने आसपास देखा था और पूछा था ” आप कौन हैं और मैं आपको देख क्यों नही पा रहा ” उस पल मुझे किसी के मुस्कराने की हल्की सी आहट सुनाई दी थी और वह आवाज़ एक बार फिर से गूंजी थी ” तुम मेरे पास आकर भी , मुझी से पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं , मैं तुम्हारा घर हूं ” मैने आश्चर्य से देखते हुए उस आवाज़ से पूछा था ” मेरा घर ” और उस पल फिर वही आवाज़ गूंजी थी ” हां तुम सबका घर , सत्य तुमने मुझे बरसों का इंतज़ार करवाया और तुम अब आए हो , मुझे तुम्हारा आना बहुत अच्छा लगा ” उस पल मुझे उस आवाज में , बहुत भावुकता महसूस हो रही थी।

       उस घर ने भराई हुई आवाज़ में मुझ से कहा था ” मुझे याद है वो पल , जब तुम सब बच्चे मेरे आंगन में खेलते थे और मां आंगन में बने चूल्हे पर , तुम सबके के लिए रोटी सेक रही होती थी ” उस घर में गूंजती आवाज़ से , अब तक मैं खुद भी बहुत भावुक हो गया था और मैने लगभग बिलखते हुए उस घर से कहा था ” आज मुझे मां याद गई थी और फिर मैं खुद को यहां पर आने से रोक नही पाया था ” मुझे रोता देख कर , वह आवाज़ एक बार फिर से आवाज़ गूंजी थी और उसने मुझ से कहा था ” मैं अक्सर तुम सब बच्चों को बहुत याद करता हूं और तुम्हें इस घर में आया देख कर , मैं खुद को रोक नही पाया ” उस समय मुझे कुछ ऐसा अनुभव हुआ था , जैसे वह घर मेरी तरह ही रो रहा था। तब तक मैने खुद को थोड़ा संभाल लिया था और मैने उस घर से पूछा था ” क्या तुम्हें मां याद है , क्या वो भी कभी यहां पर आई थी ” तब उस घर ने मुझ से कहा था ” हां , मां भी तुम सब बच्चों को इस घर में फिर से देखना चाहती है और वो तुम सब बच्चों को बहुत याद करती है ” यह सुनकर मैं खुद को रोक नही पाया था और बिलखते हुए मैने उस घर से कहा था ” मैं खुद को बहुत अकेला अनुभव कर रहा हूं , मां तुम कहां हो ” उस पल उस घर ने मुझ से कहा था ” चुप हो जाओ सत्य , देखो तुमसे मिलने कौन आया है ” तब तक मैं संभाल चुका था और मैं अपने आसपास देखने की कोशिश करने लगा था और मैने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लिए , उस घर से पूछा था ” मुझ से मिलने कौन आया है , वो मुझे दिखाई क्यों नही देता.”

       उस पल मुझे मेरी मां की आवाज़ सुनाई दी , जो मुझ से कह रही थी ” चुप हो जाओ सत्य ” और उस पल मैं अपनी मां के हाथों के स्पर्श को अपने मस्तक पर अनुभव कर रहा था , और उस पल मुझे मेरी मां की आवाज़ फिर से सुनाई दी थी ” यूं रोने से कुछ भी नही होगा सत्य और तुम्हारे पास तो सब कुछ है , तुम्हारी पत्नी और बच्चे बहुत अच्छे हैं , मैं उन सबको देख सकती हूं और मैं हर पल तुम्हारे पास ही रहती हूं.” 

      मैने बरसों बाद अपनी मां की आवाज़ सुनी थी और उस पल मैं मां की आवाज़ सुनकर बहुत भावुक हो गया था और मैने मां से रोते हुए ही कहा था ” मां तुम मुझे दिखाई क्यों नही दे रही , मैं तुम्हें बस एक बार देखना चाहता हूं ” और उस पल फिर मेरी मां की आवाज़ गूंजी और मुझे कुछ ऐसा अनुभव हुआ , जैसे किसी ने बहुत प्यार से मुझे स्पर्श किया था , तब उस पल मुझे अपने करीब से ही वह आवाज़ सुनाई दी थी.

      “चुप हो जाओ सत्य , सच को पहचानो और वर्तमान में रहो ” और कुछ क्षण की चुप्पी के बाद वह आवाज़ फिर से गूंजी थी ” तुम यहीं रुको , मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं ” और उसके बाद , सब तरफ खामोशी छा गई थी और जब इन सब बातों से मेरा ध्यान टूटा , तो मैंने देखा कि एक लड़की मेरे सामने खड़ी थी और वो मुझे बहुत ध्यान से देख रही थी और उसने बहुत सम्मान से मेरी ओर एक चाय का कप बढ़ा दिया था और मुझ से कहा था ” साहब चाय पी लीजिए ” और मैं हैरान सा उसकी ओर देख रहा था और वो मेरे हाथों में चाय का कप थमा कर चली गई थी.

      यह लड़की घर के पास काम कर रहे मजदूरों में से एक थी और मैने देखा कि वो सब मजदूर मिल जुल कर मिट्टी के चूल्हे पर खाना बना रहे थे और मस्ती में वो सब मिलजुल कर कोई लोकगीत गुनगुना रहे थे।

       फिर उन मजदूरों में से एक वृद्ध मजदूर मेरे पास आया था और उसने मुझ से पूछा था ” साहब आप ठीक हैं ” उस पल मैने सोचा कि शायद मेरे रोने की आवाज़ , उन लोगों ने सुन ली होगी और इसी वजह से , वो मेरी खेर खबर पूछने चले आए थे। मैने उनको चाय का खाली कप वापिस देते हुए उनसे ” धन्यवाद ”  कहा था और बहुत विनम्रता से उनसे कहा था ” मैं बिलकुल ठीक हूं ” तब उस वृद्ध मजदूर ने मेरी ओर देखते हुए कहा था ” शुक्र है ” और वो सब मजदूर फिर से वापिस अपने काम में लग गए थे।

      घर के दरवाज़े को ताला लगाते हुए , उस पल मैने मन ही मन में यह फैसला कर लिया था कि इस घर को रहने लायक बनाने के बाद , हम सब भाई बहन कुछ समय तक , इस घर में साथ ही रहेंगे और इसी बात को ध्यान में रख कर , मैने पास में काम कर रहे मजदूरों को कुछ पैसे देते हुए , उनके हाथ में अपने घर की चाबी भी थमा दी थी और उन्हें घर को ठीक करने के लिए क्या क्या काम करना है , वह भी ठीक से समझा दिया था और मैं अपने इस निर्णय से बहुत खुश था और उस समय धीरे धीरे शाम ढलने लगी थी और अब तक बारिश भी थम चुकी थी और घर लौटने से पहले , मैने अपने घर को , नज़र भर के देखा था और फिर तेज़ कदमों से अपने घर की ओर लौट पड़ा था।

       मेरी पत्नी बहुत बैचेनी से मेरी राह देख रही थी और शायद उसने मेरी आंखें देख कर मेरी मानसिक अवस्था को भांप लिया था और मेरे कुछ भी कहने से पहले ही , उसने मुझे अपने गले से लगा लिया था। फिर मैंने अपनी पत्नी को सब किस्सा कह सुनाया था और लगभग रोते रोते ही उससे कहा था ” सुधा आज मेरी मां से बातचीत हुई थी ” और मेरा एक भी शब्द कुछ और बोलने से पहले , मेरी पत्नी मेरी मनोस्थिति समझ गई थी और उसने बहुत प्यार से मुझे अपने गले से लगा कर बस इतना ही कहा था ” बस अब आपको और कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है , मैं सब समझ गई हूं ” और उस पल , मैने लगभग रोते रोते ही अपनी पत्नी से कहा था ” सुधा अब हम उस घर में रहेंगे और भाई साहब और बहन जी को भी इस बात की खबर दे देंगे ” इस बीच मेरी पत्नी मेरे लिए पानी ले आई थी और उसने मुझ से बहुत प्यार से कहा था ” आप जो भी कह रहे हैं , हम वैसा ही करेंगे ” और मेरा हाथ अपने हाथों में थाम कर , वो मेरे करीब ही बैठ गई थी।

        शायद उस पल उसने मन ही मन में , उस दृश्य की कल्पना कर ली थी , कि गांव के उस घर में , उस पल क्या हुआ होगा और यह सब सोच कर वो भी बहुत भावुक हो चुकी थी और वैसे भी पुरुषों के मुकाबले में , औरतें कही अधिक संवेदनशील होती हैं।

अभी कुछ ही समय बीता था कि मेरी बड़ी बहन का फोन आया और उसने बहुत प्यार से मुझ से कहा था ” छोटे कैसा है तू ” और अपनी बहन की आवाज़ सुनकर मेरा रोना निकल गया था और उसी पल मेरी पत्नी ने मेरे हाथों से फोन , अपने हाथों में ले लिया था और मेरी बड़ी बहन को गांव के घर का सारा वाक्या कह सुनाया था।

        जल्दी ही हम तीनों भाई बहन , गांव के घर में रहने चले गए थे और अब तक उन मजदूरों ने , घर की हालत में बहुत सुधार कर दिया था और घर वापसी के उन यादगार लम्हों में , हम सब भाई बहन अपने बचपन के दिनों को याद कर रहे थे और मुझे मालूम था कि उस पल हमारी मां अपने अदृश्य रूप में हमारे आसपास ही कहीं मौजूद थी और वो सारे परिवार को खुश देख कर , हम सब बच्चों को अपना आशीर्वाद दे रही होगी।

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