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कहानी : बेरोजगारी 

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          रीता चौधरी

कैसे शुरू करू कुछ समझ नहीं आ रहा सच बताऊं इतने exams देने के बाद अब कोई चाहत ही नहीं बची है.    

   जिंदा होकर भी एक अजीब सी उलझन साथ बनी रहती है. पहले कभी exams देने जाते थे तो एक डर, एक घबराहट, एक मायूसी घिरी रहती थी हरपल ऐसा लगता था की मैं पास हो गई तो क्या होगा या रिजल्ट कैसा आएगा.

    अगर पढ़ाई से संतुष्ट न होती तो एक अलग ही  बैचनी होती थी बट आज तो ऐसा लग रहा है की कुछ बचा ही नहीं है कोई उत्साह नहीं.

    आज भी उतना ही P.hd का इंतजार है जैसा पहले हुआ करता था पर वो पहले वाले उत्साह दूर दूर नजर नहीं आ रहा. बस अब ये सब एक formality लग रहा है कुछ सही नहीं लग रहा ऊपर से ये घरवालों का विश्वास जीने नहीं दे रहा मै कैसे यकीन दिलाऊं उन लोगों को अब मुझसे कुछ नहीं हो सकता बस पैसा खर्च हो रहा है.

    मैं क्या करू नहीं जीना चाहती पर भगवान को तो मेरी ज़रूरत नहीं हैं इस धरती मां के लिए बोझ बन बैठे है. बस मां तो अपने बच्चों को त्याग नहीं करती इसलिए मां तो मुझे ये स्थान दे दी है लेकिन मुझमें कोई काबिलियत नहीं है की मैं समाज के काबिल बन सकूं। कुछ अच्छा करू तो वो गलत हो जाता है.

     आज मेरे लाइफ की पहला ट्रेन यात्रा है जो अकेले कर रही हूं फिर भी कोई डर नहीं, मैं कहा जाऊंगी इसकी भी कोई  खबर नहीं.

   सच मे मै कबीर दास बनकर रह गई हूं. कोई इतना अपने लाइफ में होकर भी खुद से दूर कैसा हो सकता है. मुझे ये सफ़र कहा ले जायेगा कुछ पता नहीं मैं कहा जाकर रुकूंगी कुछ पता नहीं।

 चलिए आज का कुछ कमेंट्री हो जाए.

     सबसे पहले मेरे फोन का अलार्म बजा 4:30 am पर मैने उसे बंद कर दिया और सो गई ये सोचकर की मैं आधे घण्टे बाद उठ जाऊंगी.

   ऐसा कुछ नहीं हुआ मैं 6:00 am तक सोई रह गई. जब जगी तो सबसे पहले फ्रेश हुई उसके बाद ब्रश की एंड उसके बाद कंघी की ,कपड़ा पहनी फिर चोट्टी की उसके बाद जैकेट पहनी, शूज पहनी.

    लेट तो काफी हो चूका था फिर भी भाभी चाय बनाकर लाई और 3 टोस्ट मैंने एक हैपी (Dog) को दी और दो खुद खाई अभी चाय पी रही तभी बड़े भाई की आवाज़ आई की लेट हो गया है घर में ही बैठी रहो.

   मैने उनसे पहले ही पैसा मांगा था तो वो भी जग गए थे.  मैने आनन फानन में सीढ़ी से उतरते हुए अलमारी से वाटर के बॉटल ली और बाहर गई तब भी एक मेरा भाई संदाश के लिए गया हुआ था तो मैं फिर अंदर आई.

   उसके जस्ट मेरा भाई आ गया अब मुझे फिर सब बुलाने लगे मैं फिर बाहर गई और यहां से सफर मेरा शुरू हुआ.

     मैं अपने छोटे भाई के साथ अपने गांव के चट्टी पर आई तब तक घड़ी के 7:05 हो चुके थे. कोई गाड़ी नहीं आ रही थी. बहुत इंतजार करने के बाद एक टेंपू आई उसमे भी सारी सीटें रिज़र्व थी. मुझे फ्रंट सीट पर बैठना पड़ा.  क्या करे बैठना पड़ा अब गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी.

    इसके साथ ही मेरे अकेले के सफर भीं शुरू हो गया. ओस होने के वजह से लग रहा था की समय से नहीं पहुंच पाएंगे ट्रेन का नाम सारनाथ एंड उसका टाइम 8:30 था और मैं 8:05 पर स्टेशन पहुंच गई थी.

    मैं 8:12 तक ट्रेन में जाकर जनरल बोगी के विंडो वाली सीट पर बैठ गई थी. मेरे साथ कुछ महिलाएं और कुछ पुरुष थे जो उनमें से कुछ को बनारस ही जाना था और कुछ को इलाहाबाद.

ट्रेन अपने निर्धारित समय से स्टार्ट हो गई थी और मैं इलाहाबाद की ओर चल दी.

   फिर भी कोई डर नहीं. आखिर ऐसा क्यों मैं जिंदा तो हूं न मै. अपने अंदर वही डर देखना चाहती हूं जो 1st time होता है न चाहते हुए भी. छोड़िए ये डर भीं हमसे डर गया है सायद।

    exam की कोई टेंशन नहीं हो रही है. ऐसा लग रहा की मरना ही है या मर चुकी हूँ. कुछ भी मैं महसूस क्यों नही कर पा रही. सच में मेरे साथ क्या हो रहा. डाट सुन सुनकर मैं एक निर्जीव प्राणी बन गई हूं.

   इतनी बेइज्जती का सामना कर ली हूं की अब कोई इसका भी डर नहीं लगता. बस ये लगता है की कोई इंसल्ट करेगा तो वही पुराने वाले आंखो में आंसू, वही दुःख, फिर और क्या होगा ज्यादा से ज्यादा 3 दिन वही सोच कर मरती रहूंगी.

   यही तो होता है हर बार. ये तो होता ही रहेगा जिसे मैं रोक नहीं सकती। इंसल्ट, रिजेक्शन.  ये तो मेरे लाइफ का important पार्ट है. भला इससे पीछा कहा छूटने वाला है. सच में यार ये लाइफ ले कहा जाएंगी मुझे कुछ पता नहीं.

    बस रोना आ रहा. बस यही उम्मीद ,यही आस लगी होती है की मेरी मौत कब आयेगी. नहीं जीना चाहते,  वाकई सब बिखर सा गया है जिसे मैं कभी भी कलेक्ट नहीं कर सकती.  सब बिखर सा गया है. मैं सबके लिए दुखो का कारण बन पड़ी हूं.

   इसलिए मां,  मैं नहीं चाहती जीना. मां मुझे कोई पसंद नहीं करता. ये आप अच्छे से जानती है फिर क्यों मां मेरी wish पूरा नहीं करती हो।

   अब मुझसे कुछ नहीं होने वाला. ये exam देने जा रही हूं.  इसका रिजल्ट भी मुझे पता है. मैं पढ़ कर जाती थी तो तब रिजल्ट अच्छे नहीं आते थे. आज तो कुछ पढ़ा ही नहीं बस रोना आ रहा मां।

   मां नहीं जीना. मां लोग प्यार करते है किसी से. मैने तो P.hd के अलावा कुछ सोचा ही नहीं.  हरपल दिल में बस यही चाहत रही. कोई दूजा नहीं आ पाया. पर क्या मिला कुछ भी तो नहीं.

सफ़र के ये सिलसिले भी कुछ यूं पिछे होते गए. मैं ठहरी रही वही पर और ये जख्म हज़ार देते गए।

भूल गई मैं खुद को भी जब मेरे वसूल टूटे मिले. खूब संजोया हर पल को फिर भी मेरे सपने बिखरे मिले।

टूटी थी मेरी मंज़िल कुछ इस तरह जिसे मैं सहेज न पाई. कोशिश की खुद से मिलने को पर मै अपने आप को ही ढूंढ न पाई।

  कुछ वजह बने मेरे ख़ुद के वसूल ही मेरे बर्बादी में. मै पागल होती गई लोगों के झूठे अल्फाजों में।

चली ऐसी पुरवा वो मुझको भी समेटती गई. सहमी थी मैं कुछ पल फिर रुकी रह गई।

मेरी ट्रेन अब बनारस जंक्शन पर रुकी हुई है. मेरे फ्रंट पर एक भाई कुछ समय पहले बैठे थे. वो कब से वीडियो कॉल या किसी से बात करके स्माइल करते जा रहे थे. अब शायद रील्स देखकर मुस्कुरा रहे है।

    अब उनके ही साइड में एक जेंटलमैन टोपी पहने हुए हैं. गेहूए कलर  उनके भी है.  3×6 इंच की mobile लिए हुए वो भी  मंद मंद स्माइल कर रहे है।

   अब उनके साइड में एक और भी भाई बैठे है जिनका कलर थोड़ा फेयर है. वो भी 5 रु वाले मूंगदाल नमकीन खाए जा रहे है और गहरे चिंतित नजर आ रहे है। अब इनके साइड में एक बहन अभी बनारस से बैठी है जो वो भी फ़ोन में टिप टॉप किए जा रही है.  जस्ट एक महिला उस लड़की के साइड में बैठी है जो मुस्लिम है।

    हमारे सीट के जस्ट कार्नर पर एक भाई बैठे हुए है जो वो भी फोन में घुसे हुए है. उनके साइड में एक और भी है जो reels देखें जा रहे है और उनके  सामने वाले भैया उनके फ़ोन में नजर गड़ाए हुए है.  reels देखने वाले भाई के साइड में एक भाई बैठे है जो मेरे साइड में भी है. ये भाई अपनी जीवन से हताश नज़र आ रहे अपने कानो में हैंडफ्री लगाकर. ऐसा लग रहा है की कोई हताश निराश वाला गाना सुन रहे है.

    अब मैं मेरी बारी.  मैं तो अपने सीट के विंडो के पास कॉर्नर पर बैठी हूं और कुछ लेख लिखते हुए गाना सुनती जा रही हूं. नए पुराने कुछ खट्टे मीठे.

 मेरे फ्रंट के उपर वाले सीट पर दो भाई बैठे है, जिनमे से एक ने अभी घर का बना हुआ स्पेशल खाना खाए और एक अपने जैकेट के जेब में दोनो हाथ डाले हुए नीचे बैठे पैंससेंजर्स को देख देखकर स्माइल कर रहे है.  अब मेरे ऊपर वाले सीट पर कितने लोग है ये मैने काउंट ही नहीं किया शायद उस सीट पर दो लोग ही हो उनमें से एक भाई का फोन नीचे गिरा था. जब मैने भाई का फोन उठाया तो वो pubge खेल रहे थे.

   हम जिस कंपार्टमेंट में बैठे है उसमे एक किन्नर आई और पैसे मांगी. भाईयो से किसी ने भी नहीं दिया सिवाय एक भाई के. फिर भी वो बिना शोर मचाएं चली गई. ऐसा मैने 1st टाइम देखा उनका रिस्पॉन्स कुछ भी न था.

   अब मेरी ट्रेन इलाहाबाद पर फतेह करने के लिए आगे बढ़ती जा रही है.

सच कहते है भारत के किसी भी कोने में चले जाओ वहा के रहन सहन ,बोल चाल, भेष भूषा बदलते नजर आएंगे.  गेहूं के खेत, वो सरसो का फूल, वही पेड़ पौधे, वही खेत खलिहान, वही चिड़ियों का चचहाना, वही टेम्पु, वही रिक्शा वही मिट्टी, वही पानी, वही नदिया, वही गाय भैंस  जाने कितनी चीजे सब सेम नजर आते है.

   ट्रेन काफी आगे निकल चुकी है. लेकिन मौसम में अब भी कोई बदलाव नहीं है. वैसे ही सीत ओस नजर आ रहा है बट अब हल्का धूप की लालिमा दिख रही है।

    अब हमारी ट्रेन भदोही आ चुकी है अब हमारे बोगी में कुछ ने पैसेंजर आ चुके है अभी एक आंटी बैठी जिनके दो बच्चे है छोटे छोटे. और उनके साथ जो अंकल है वो उनके साइड में खड़े हुए है आंटी का छोटा वाला बच्चा बहुत ही शरारती है वो कार्टून देख रहा है.  फिर अपने बड़े भाई को मां से गोद से हटाकर खुद ही बैठ गया है. अब उसका बड़ा वाला भाई उसके फोन में खड़े होकर देख रहा है.

    एक बार और हमारी ट्रेन रफ्तार पकड़ी है.  ऐसा लग रहा है की आज मुगलों का किला को अंत करके ही दम लेगी. इसी बीच हरे मटर 10 रु मिल रहे है. अभी just समोशे वाले भाई भी आए है जो 20 रु में 4 समोसे दे रहे है. अब हमारे फ्रंट वाले भाई जो विंडो वाले भाई के just पास में बैठे है वो अभी हाथ मुंह धोकर आए है और पूरी और 2 टाइप की सब्जी खाना शुरू किए है.

  चाय वाले भाई भी आ गए.  ट्रेन की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई थी फिर तेज हो रही है. हमारे साइड में को भाई बैठे है उनके घर से फोन आ रहा था. network issue था शायद इसलिए भाई से बात नहीं हो पाई थी. जब भाई ने फ़ोन रिटर्न किया तो उनके घरवाले शक कर रहे थे. भाई कही और बात कर रहा था. फ़ोन busy आ रहा था. भाई के कहने पर भी उनकी शक दूर नहीं हो रहा था. भाई ने अपने just side में बैठे भाई से बात कराया. तब कही उनका शक दूर हुआ. वैसे भी उनके घर जाने के बाद ही पता चलेगा.

    अब हमारी ट्रेन जंघई जंक्शन से आगे निकल चुकी है. वो अपनी रफ्तार पकड़ी हुई है. ये चाय वाले भैया पल भर में चले आ रहे है. अब कुछ लोग फ़ोन रख कर बातचीत करना स्टार्ट किए हुए है. ट्रेन में कुछ ज्यादा ही शोर होने लगा है. अभी तक तो शांत थी.  कोई गाना गाते हुए हमारे कंपार्टमेंट के तरफ बढ़ रहे है. आ ही गए है. उनके कोट =( गरीब अंधे आदमी के मदद करे बाबू).

कुछ लोगो ने उनको कुछ सिक्का दिया. कुछ इस तरह मेरा सफ़र खत्म हुआ। (चेतना विकास मिशन)

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