अग्नि आलोक
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गाँधी जी की पुण्यतिथि पर प्रस्तुत हैं दो लघुकथाएँ :

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आदर्श
( महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर )
◇◆◆◆◆◆◆◇

       एक भारतीय और एक जर्मन के बीच किसी तीसरे देश में मुलाक़ात हुई। दोनों के बीच हुई बातचीत के कुछ अंश:

जर्मन ने कहा- मुझे भारत पर गर्व है कि भारत ने गाँधी को पैदा किया।
भारतीय ने कहा- और मुझे जर्मनी पर गर्व है कि जर्मनी ने हिटलर को पैदा किया।

  • कृपया तंज़ न करें। हम शर्मिंदा हैं कि हम हिटलर को मार नहीं पाए।
  • और हम गर्वित कि हमने गाँधी को मार दिया।
  • क्या कह रहे हैं आप? हिटलर की वजह से हमारे राष्ट्र की जो छवि बनी, उससे उबरने के लिए हमने गाँधी के आदर्शों को अपनाया है।
  • हमने राष्ट्रवाद के प्रसार के लिए हिटलर को अपना आदर्श बनाया है।
  • ओह, बहुत ग़रीब और बदनसीब हैं आप !
  • क्या ?
  • कुछ नहीं। ऊपरवाला तुम पर रहम करे !
गांधी की हत्या के बाद पहली FIR किसने कराई थी? - Eyewitness and their  statements on Mahatma Gandhi assassination
  • हत्या


( गाँधीजी के पुतले की कुछ गुँडों द्वारा हत्या करने की विद्रूपता पर )
◇◆◆◆◆◆◆◆◆◇

      उस बहुत मोटी सी महिला के दाहिने हाथ में पिस्टल था और सामने कपड़े से बना गाँधी का पुतला। पुतले के पेट में हूबहू ख़ून के से गाढ़े लाल रंग के ग़ुब्बारे रखे गए थे। मोटी महिला के आसपास बीस-पच्चीस पिछलग्गुओं का मजमा था। सब महिला की तारीफ़ करते हुए गाँधी को गालियाँ दे रहे थे। सबके चेहरों पर गाँधी की हत्या से उत्पन्न होने वाली आसन्न प्रसन्नता की प्रतीक्षा थी। तभी महिला ने पिस्टल तानी, मजमा ख़ामोश हो गया। महिला ने गोली दाग़ी। गाँधी के पेट से निकलता ख़ून ज़मीन पर फैलने लगा। मजमे में उत्साह मिश्रित हर्ष ध्वजा की तरह फहराने लगा। नारा गूँजा - नाथूराम गोडसे ज़िंदाबाद !
      "मर गया..... महात्मा !" महिला के पास खड़े एक आदमी ने कहा। 
      "मैडम की गोली थी, मरता कैसे नहीं ?" दूसरे ने कहा।
      सब जश्न में डूबे थे कि तभी एक महीन, मासूम, निश्छल बूढ़ी हँसी सुनाई पड़ी।
      "अरे, यह तो गाँधी की हँसी है... वह ज़िंदा है।" एक पिछलग्गू की बदहवास आवाज़ ने जश्न को स्थगित कर दिया।
      "हाँ, यह मैं ही हूँ मेरे प्यारे बच्चो !"
      "तो तुम मरे नहीं? " मोटी महिला हिकारत से बोली।
      "पौनी सदी से तुम मुझे हर रोज़ मार रहे हो। क्या सचमुच मुझे मार पाए ? "
      "किसी दिन हम तुम्हें अवश्य मार देंगे।"
      "मुझे अपने मरने का ज़रा भी अफ़सोस नहीं होगा, पर यक़ीन करो कि उसी दिन तुम सब भी मर जाओगे। "
 सुप्रसिद्ध चिंतक और लघुकथा लेखक -हरभगवान चावला,सिरसा,हरियाणा, संपर्क - 93545 45440 ,ईमेल - hbchawla1958@gmail.com

        संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क -9910629632,ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com

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