-मंजुल भारद्वाज
गिद्ध मंडरा रहे हैं
अब लाशों को नहीं
ज़िन्दा इंसानों को
नोंच रहे हैं !
झुण्ड के झुण्ड
गर्व से कंकाल होने के
नारे लगा रहे हैं !
कंकाल
अब हड्डियों का चूर्ण बना
राष्ट्रवाद,संस्कृति,संस्कार के छद्म पर
विकास का लेप लगा रहे हैं !
गिद्ध अन्नदाता की जमीन
युवाओं का रोजगार
महिलाओं की अस्मत
नोंच नोंच कर
चुनावी जीत से
संविधान का मर्सिया
पढ़ रहे हैं !
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