10 मई को इस मामले में अपना फैसला सुना सकती है विशेष अदालत
करीब 11 साल बाद नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का मामला सुर्खियों में है। दाभोलकर महाराष्ट्र में अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए जाने जाते थे। 2013 में नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कर दी गई थी। पुणे की एक विशेष अदालत 10 मई को इस मामले में अपना फैसला सुना सकती है। 2014 में इस मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ 2016 में आरोप पत्र दायर किया था।
आइये जानते हैं कि कौन थे नरेंद्र दाभोलकर? दाभोलकर क्या काम करते थे? उनकी हत्या कब हुई थी? इस मामले में अभी क्या हो रहा है?
नरेंद्र दाभोलकर कौन थे?
नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। 1 नवंबर 1945 को जन्मे नरेंद्र दाभोलकर अच्युत गांधीवादी समाजवादी देवदत्त दाभोलकर के छोटे भाई थे। उन्होंने मिराज के सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे राष्ट्रीय सेवा दल के संपर्क में आए और इसकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए। समाज में प्रचलित अंधविश्वास का मुकाबला करने और तर्कवाद और वैज्ञानिक तर्क लाने के उद्देश्य से वह राष्ट्रीय सेवा दल से जुड़ गए।
डॉक्टरी छोड़कर अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चलाने लगे
दाभोलकर ने 12 साल तक एक चिकित्सक के रूप में काम किया। जैसे-जैसे सामाजिक कार्यों के प्रति उनका जुनून बढ़ता गया, उन्होंने अपना यह पेशा पूरी तरह से छोड़ दिया। शुरुआत में दाभोलकर प्रोफेसर श्याम मानव की अध्यक्षता वाली अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (ABANS) में शामिल हुए। हालांकि, प्रोफेसर मानव के साथ मतभेदों के कारण कुछ वर्षों के बाद दाभोलकर ने ABANS छोड़ दिया। इसके बाद दाभोलकर ने अपने नव स्थापित संगठन अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति महाराष्ट्र के जरिए अपनी गतिविधियों को जारी रखा।
पुणे में दाभोलकर की हत्या
पुणे में 20 अगस्त 2013 को मोटरसाइकिल सवार दो हमलावरों ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कर दी थी। दो जाने-माने हिस्ट्रीशीटर दाभोलकर की हत्या में मुख्य संदिग्ध के रूप में नामित किए गए थे। आरोपियों को घटना के दिन ही गिरफ्तार किया गया था जिन पर अन्य आरोप भी थे। हिस्ट्रीशीटर के पास से हथियार और कारतूस बरामद हुए थे जो दाभोलकर के शरीर से बरामद गोलियों से मेल खाते थे। हालांकि, दोनों संदिग्धों पर कभी औपचारिक रूप से हत्या का आरोप नहीं लगाया गया और इसके तुरंत बाद उन्हें जमानत दे दी गई। इस मामले की जांच बाद में सीबीआई के हाथ में चली गई।
दाभोलकर की हत्या के बाद महाराष्ट्र में आया अंधविश्वास विरोधी विधेयक
दाभोलकर की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। सर्जन अमित थडानी की पुस्तक ‘रेशनलिस्ट मर्डर्स’ में लिखते हैं कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने डॉ. दाभोलकर की हत्या को प्रगतिशील महाराष्ट्र की छवि पर आघात बताया था। एक साक्षात्कार में चव्हाण ने दावा किया था कि गोडसे की विचारधारा मानने वाले लोग दाभोलकर की हत्या इसके लिए जिम्मेदार हैं। उधर राज्य में अंधविश्वास विरोधी कानून लागू करने की जबरदस्त बहस चल रही थी।
मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि अंधविश्वास विरोधी विधेयक पारित करवाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि जिस प्रगतिशील विचार के लिए उन्होंने अपनी जान दी, वह राज्य में नहीं मरेगा। ऐसा लगता है कि उनके विचारों के खिलाफ किसी ने उनकी हत्या की। इस बीच चव्हाण के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने अंधविश्वास विरोधी कानून लागू करा दिया, जिसे वह 2003 से पारित कराना चाहती थी।
दाभोलकर की हत्या के बाद क्या हुआ?
हत्या के मामले की जांच पुणे पुलिस ने शुरू की थी। हालांकि, 2014 में इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने इस मामले में वीरेंद्र सिंह तावड़े, सचिन आंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया था। तावड़े कथित तौर पर सनातन संस्था से जुड़ा था। जबकि आंदुरे और कालस्कर कथित तौर पर शूटर थे। सीबीआई इन तीनों के अलावा वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहायक विक्रम भावे के खिलाफ 2019 में आरोप पत्र दायर किया था। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी आरोप लगाए थे। तावड़े, आंदुरे और कालस्कर जेल में हैं। जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं। हत्या के करीब 11 साल बाद इस मामले में पुणे की एक विशेष अदालत 10 मई को अपना फैसला सुना सकती है।
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