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बद्री विशाल पित्ती के प्रयास से लोहिया के विचारों को पढ़ और सुन पाए उनकी चर्चा तो भुला ही दी गयी

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मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’

बीते 23 मार्च को देश-दुनिया में लोहिया जयंती अवसर पर समाजवादी आन्दोलन और विचारधारा पर कई प्रकार के विमर्श हुए। लोहिया साहित्य पढ़े जाने और समाज की सामयिक समस्याओं का समाधान लोहिया विचार से होने के सुझावों की भरमार हो गयी थी। लेकिन जिस व्यक्ति के प्रयास से आज हम लोहिया के विचारों को पढ़ और सुन पाए उनकी चर्चा तो भुला ही दी गयी। बात 1954 की है जब डॉ लोहिया नैनी जेल में बंद थे। उसी दौरान राष्ट्रीय स्तर पर घटित दो घटनाओं ने लोहिया को आहत कर दिया था। जहाँ एक ओर केरल में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की पट्टम थानुपिल्लई की सरकार रहते पुलिस ने जुलूस को नियंत्रित करने के लिए गोली चला दिया जिसमें चार व्यक्ति मारे गये।
इस घटना से दुखी होकर लोहिया ने तार भेजकर 12 अगस्त को जेल से ही पार्टी महासचिव के हैसियत से मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा। जिसको लेकर पार्टी फोरम में असंतोष उभर आया। वहीं दूसरी ओर 1955 के कांग्रेस अधिवेशन में ‘समाजवादी ढांचे के समाज’ के निर्माण प्रस्ताव को लेकर सोशलिस्टों में तनाव वाली घटना थी। जिसमें अशोक मेहता का समर्थन कांग्रेस की ओर था जबकि मधु लिमये ने इसका कड़ा विरोध किया। जिसके फलस्वरूप 26 मार्च 1955 को बम्बई कमेटी ने मधु लिमये को
निलम्बित कर दिया। ऐसे में डॉ लोहिया समाजवादी आन्दोलन और विचार को एक दिशा देने के लिए नया संगठन बनाना चाहते थे लेकिन नई पार्टी के गठन का स्थान और उसे आगे बढ़ाने के लिए एक मजबूत संगठनकर्ता सहित अन्य राजनीतिक अभिरुचियों वाले व्यक्ति की तलाश को लेकर चिंतित थे। जिसका समाधान तत्कालीन समय में 28 वर्षीय नौजवान बद्री विशाल पित्ती के रूप में हो सकी।

1955 के अंत में हैदराबाद में सोशलिस्ट पार्टी के गठन और सम्मेलन की सफलता के सूत्रधार बद्री विशाल पित्ती ही थे। वे एक मारवाड़ी औद्योगिक परिवार से थे। बद्री विशाल पित्ती ने पारिवारिक परम्पराओं को तोड़ते हुए निजाम के खिलाफ आन्दोलन किया.उनके अन्दर सांगठनिक और वाणिज्यिक कौशल का सुन्दर मेल था। जिस वजह से सोशलिस्ट पार्टी का विस्तार तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। कन्नौज लोकसभा उपचुनाव का सफल संचालन करते हुए उन्होंने लोहिया को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके बाद डॉ लोहिया ने संसद में तत्कालीन नेहरु सरकार की नीतियों को अधिक से अधिक जनहितैषी बनाने का दबाव बनाया। बद्री विशाल पित्ती ने राजनीति से इतर साहित्य,कला,संस्कृति सहित पत्रकारीय विधा को समृद्ध करने में बड़ा योगदान दिया। हिंदी भाषा के महत्व को बढ़ाने के साथ साहित्यकारों के जन सरोकार से जुड़ी रचनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए कल्पना जैसी कालजयी पत्रिका शुरू करवाया। जिसके संपादक मंडल में स्वयं के साथ तत्कालीन समय के ख्यातिलब्ध साहित्यकारों को भी शामिल किया। कल्पना पत्रिका की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सम्पादकीय मंडल में रचनाओं पर विचार से पूर्व उनके लेखकों के नाम हटा देते थे। जिससे किसी प्रकार के पूर्वाग्रह की गुन्जाईस न रह सके। रचनाओं के चयन उपरान्त ही सम्पादकीय मंडल उन रचनाओं के लेखको का नाम जान पाता था। लोहिया के विचारों से गहरे तक प्रभावित होने की वजह से एक गैर हिंदी प्राप्त में भी हिंदी को बढ़ाने के लिए वह कल्पना की उपलब्धता को देश के अधिकांश हिस्सों में पहुँचाने का सफल प्रयास करते थे। कल्पना के माध्यम से उन्होंने कई दशकों तक समाज और सहित के अंतर्संबंधो को सतत मजबूती देने का काम किया। साथ ही पत्रकारीय विधा के लिए एक सुरुचि संपन्न दस्तावेज भी तैयार करने का बड़ा काम किया।

साहित्य से इतर कला के प्रोत्साहन के लिए भी बद्री विशाल पित्ती आजीवन समर्पित रहे। डॉ लोहिया की प्रेरणा से मकबूल फ़िदा हुसैन ने पित्ती के हैदराबाद स्थित अतिथि गृह में रामायण की घटनाओं की सुन्दर कलात्मक पेंटिंग श्रृंखला बनाई। जो आज भी हैदराबाद में सुरक्षित हैं। बद्री विशाल पित्ती का समाजवादी आन्दोलन में लोहिया की वैचारिकी को जीवित रखने का बड़ा योगदान है। राममनोहर लोहिया समता न्यास,हैदराबाद ने जिस तरह लोहिया विचार को छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के माध्यम से हम सभी को उपलब्ध कराया,वह समाजवादी विचारधारा के लिए बड़ी धरोहर है। उनके भाषणों को ग्रामोफोन से रिकॉर्ड कराकर सुनने के अनुरूप बनाकर उपलब्ध कराने जैसे कार्य ऐतिहासिक महत्व के हैं। राममनोहर लोहिया समता विद्यालय स्थापित करना उनका सपना था साथ ही हिमालय बचाओं आन्दोलन सहित लोहिया के अनेक प्रासंगिक विचारों को मूर्तरूप देने का शुरूआती प्रयास वो आजीवन करते रहे। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया और जेल भी गये साथ ही हैदराबाद को भारत में शामिल करने,अनाज के दाम कम करने सहित 1959 में अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन की लड़ाई लड़ते हुए जेल यात्रायें किया। सोशलिस्ट पार्टी से आंध्र प्रदेश विधानसभा में सदस्य और राज्यसभा सांसद रहते हुए वे जनहित आधारित मुद्दों के बड़े पैरोकार के रूप में दिखाई दिए। साहित्य,कला और राजनीति के समाजवादी संगम के पर्याय बद्री विशाल पित्ती का जन्म 28 मार्च 1928 और देहावसान पचहत्तर वर्ष की उम्र में 6 दिसम्बर 2003 में हुआ। उनके जन्मदिन अवसर पर लोहिया विचार के जनसरोकार का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजली होगी।

मणेन्द्र मिश्रा ‘मशाल’
यश भारती सम्मानित, संस्थापक: समाजवादी अध्ययन केंद्र

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