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जयकिशन और शंकर की हो गई अनबन…..!

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मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में सर्वाधिक कामयाब संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने अपने सुरों के जादू से श्रोताओं को कई दशकों तक मंत्रमुग्ध किया और उनकी जोड़ी एक मिसाल के रूप में ली जाती थी, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच अनबन हो गई थी। शंकर और जयकिशन ने एक-दूसरे से वादा किया था कि वे कभी किसी को नहीं बताएंगे कि धुन किसने बनाई है, लेकिन एक बार जयकिशन इस वादे को भूल गए और मशहूर सिने पत्रिका फिल्म फेयर के लेख में बता दिया कि फिल्म संगम के गीत यह मेरा प्रेम पत्र पढक़र कि तुम नाराज न होना… की धुन उन्होंने बनाई थी।

इस बात से शंकर काफी नाराज भी हुए। बाद में पाश्र्वगायक मोहम्मद रफी के प्रयास से शंकर और जयकिशन के बीच हुए मतभेद को कुछ हद तक कम किया जा सका। जयकिशन दयाभाई पांचाल का जन्म 04 नवंबर, 1932 को गुजरात में हुआ। बचपन के दिनों से ही उनका रुझान संगीत की ओर था और उनकी रुचि हारमोनियम बजाने में थी। जयकिशन ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा वेदलाल से हासिल की और प्रेमशंकर नायक से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा हासिल की। जयकिशन पर धुनें बनाने का जुनून इस कदर सवार रहता था कि जब तक वे धुन तैयार नहीं कर लेते, उसमें ही रमे रहते थे। अपनी इसी खूबी की वजह से उन्होंने अपना अलग ही अंदाज बनाया। वर्ष 1946 में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए जयकिशन मुंबई आ गए और एक फैक्ट्री में टाइमकीपर की नौकरी करने लगे। इस बीच उनकी मुलाकात शंकर से हुई। शंकर उन दिनों पृथ्वी थिएटर में तबला बजाने का काम किया करते थे और उसके नाटकों में छोटे-मोटे रोल भी किया करते थे।शंकर की सिफारिश पर जयकिशन को पृथ्वी थिएटर में हारमोनियम बजाने के लिए नियुक्त कर लिया गया। इस बीच शंकर और जयकिशन ने संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम की शागिर्दी में संगीत सीखना शुरू कर दिया।

वर्ष 1948 में राज कपूर अपनी फिल्म बरसात के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। उन्होंने शंकर-जयकिशन को मिलने का न्योता भेजा। राज कपूर शंकर-जयकिशन के संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने शंकर-जयकिशन से अपनी फिल्म बरसात में संगीत देने की पेशकश की।फिल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। बरसात की कामयाबी के बाद शंकर-जयकिशन संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।शंकर-जयकिशन की जोड़ी गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेंद्र के साथ काफी पसंद की गई। शंकर-जयकिशन को सर्वाधिक नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। शंकर की जोड़ी जयकिशन के साथ वर्ष 1971 तक कायम रही। 12 सितंबर 1971 को जयकिशन इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने मधुर संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले संगीतकार शंकर भी 26 अप्रैल 1987 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।शंकर-जयकिशन की जोड़ी वाली सुपरहिट गीतों में कुछ हैं- आवारा हूं, आवारा हूं या गर्दिश में आसमान का तारा हूं, ऐ मेरे दिल कहीं और चल, प्यार हुआ इकरार हुआ है, मेरा जूता है जापानी, सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी, अजीब दास्तां है, चाहे कोई मुझे जंगली कहे, बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं, मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया, सजन रे झूठ मत बोलो, मैं गाऊं तुम सो जाओ, जीना यहां मरना यहां, आजा सनम मधुर चांदनी में हम, तेरी प्यारी-प्यारी सूरत को, बहारों फूल बरसाओ, पर्दे में रहने दो, जाने कहां गए वो दिन… आदि।

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