अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

होली पर आरएसएस, बामसेफ और विज्ञान

Share

रजनीश भारती

होली जैसे त्योहार भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में हर साल मनाए जाते हैं। दक्षिण कोरिया में “बोरियोंग मड” नामक त्योहार में लोग एक दूसरे पर मिट्टी का लेप लगाते हैं। थाईलैंड में “सोंगक्रन” त्योहार में लोग बिल्कुल होली जैसे भीगकर खेलते हैं। स्पेन में सितंबर के महीने में “कास्कामोरस” त्योहार में लोग एक दूसरे को काले रंग से रंगते हैं। इटली में “बैटल ऑफ द ऑरेंज” नाम से त्योहार में लोग एक दूसरे पर संतरे फेंक कर मनाते हैं।

भारत में कहीं-कहीं तो रंगों के साथ ही लठ्ठमार होली महीनों तक खेलते हैं। हमारे गांव की होली में रात में होलिका दहन होता था। सुबह पुरुषों की तरफ से थोड़ी-हँसी, ठिठोली, व्यंग्य होते इसके जवाब में औरतें कीचड़, गोबर, पानी फेंककर होली की शुरुआत कर देती थीं। दोपहर में औरत मर्द एक दूसरे पर रंग फेंक कर होली खेलते, कुछ लोग टोलियां बनाकर आते ढोल मजीरा बजाते होली गीत गाते, और रंग खेलते। इस दौरान कुछ लोग पद के अनुसार थोड़ी अश्लीलता भी कर लेते थे। जिसे लोग बुरा नहीं मानते थे। तीन-चार बजे शाम को अबीर लगाकर गले मिलते थे। पकवान खाते, कुछ लोग नशे में धुत हो जाते और मांसाहार तो आम बात हो जाती थी। कमोवेश ऐसा ही आज भी देहातों में होता है।

होली के विज्ञान सम्मत इतिहास को जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि आरएसएस और बामसेफ जैसे प्रतिक्रियावादी और जनविरोधी संगठन क्या बताते हैं और कैसे जनता को गुमराह करते हैं।

होली पर आरएसएस की कहानी-
अंधविश्वासियों का एक धड़ा ऐसा है जो बताता है कि होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी। होलिका किसी वरदान के कारण आग से नहीं जलती थी। हिरण्यकश्यप राजा था। वह भगवान विष्णु का विरोधी था। उसका बेटा प्रह्ललाद बचपन में ही विष्णु भक्त बन गया था। हिरण्यकश्यप को यह भक्तिपसन्द नहीं थी। इस पर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मृत्यु दण्ड देना चाहा। तय यह हुआ कि होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर चिता में बैठेगी। प्रह्लाद जल जायेगा होलिका बची रहेगी। मगर भगवान की भक्ति के प्रताप से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गयी। तभी से होली जलाने की परम्परा चली आ रही है। (प्रह्लाद को लोहे की जंजीरों से बांध कर भी चिता पर रख सकते थे, मगर कहानीकार को तो अंधविश्वास फैलाना था… )

होली पर बामसेफ जैसे जातिवादी संगठन की कहानी-
हिरणाकश्यप जिला हरदोई के बहुत प्रतापी राजा थे जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। हिन्दू धर्म के काल्पनिक देवताओं के विरोधी थे सिर्फ तथागत गौतम बुद्ध के मार्ग को मानते थे इनके बालक का जन्म हुवा जिसका नाम प्रहलाद रखा लेकिन उसकी शिक्षा के लिए उनके पास अन्य कोई विकल्प नही थी इस लिए प्रह्लाद को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल भेजा।
गुरुकुल में शिक्षा देने वाले सभी ब्राह्मण थे जो काल्पनिक देवी देवताओं की कहानी प्रह्लाद को बताते थे जिसके कारण प्रह्लाद राजा हिरणकश्यप की बौद्ध धर्म की बातों को अनसुना करने लगा और दोनों में मतभेद होने लगा आपस में झगड़ा होता रहता था।
हिरणाकश्यप की बहन होलिका गुरुकुल अपने भतीजे प्रह्लाद से मिलने जाया करती थी एक दिन गुरुकुल में जो पंडित पढ़ाते थे उनकी नजर होलिका पर पड़ी होलिका बहुत सुंदर थी जिसके कारण वहां पढ़ाने वाले पंडितों ने उसका अपहरण कर अपने मुह बांध कर ,कोयला ,नकाब ,रंग लगाकर बलात्कार किया ताकि होलिका उनको पहचान न पाए।
लेकिन होलिका ने पहचान कर उनका विरोध किया और हिरणाकश्यप को बताने को कहा जिससे गुरुकुल में पढ़ाने वाले पंडित घबराये और उन्होंने होलिका को आग लगाकर जला दिया और उसको होली नाम से पचारित किया।

जो आज भी चल रहा है होली जलाने वाला आज भी पंडित ही होता है साथियों होली त्यौहार हमारा अपमान है शूद्र भाई जाग्रत हो अपनी हार पर खुशी न मनाये ll
(बामसेफ द्वारा बताए गये इतिहास को हमने सोशल मीडिया से जैसा पाया वैसा ही रख दिया, कुछ लोग इस कहानी में होलिका द्वारा प्रह्लाद को टिफिन पहुँचाने की भी बात करते हैं, कुछ लोग बलात्किरियों को दण्डित करने का भी जिक्र करते हैं, अबीर का अर्थ कायर बताते हैं…)

होली का विज्ञानसम्मत इतिहास क्या है-
जिन तत्वों से जीव शरीर बना है उन तत्वों को खाये-पचाए बगैर जीव शरीर जिन्दा नहीं रह सकता। खाने-पचाने की प्रक्रिया में भूख लगती है। भूख की समस्या का समाधान भोजन है। प्राचीन काल में अन्य जीवों की तरह मनुष्य भी भोजन की समस्या का समाधान करने के लिए भोजन का संग्रह करता था। कालान्तर में मनुष्य भोजन का उत्पादन करने लगा। धीरे धीरे भोजन का उत्पादन ही मनुष्य के सारे क्रियाकलापों को निर्धारित करने लगता है। भूख और भोजन के उत्पादन को दरकिनार करके मानव समाज के इतिहास की व्याख्या करना विज्ञान विरोधी दृष्टिकोण है। विज्ञान विरोधी दृष्टिकोण से तमाम तरह के अंधविश्वास पैदा होते हैं। आरएसएस और बामसेफ जैसे शोषक वर्गों के संगठन विज्ञान विरोधी दृष्टिकोण से होली के इतिहास की भौंड़ी व्याख्या करके अंधविश्वास, जातिवाद और साम्प्रदायिकता फैला रहे हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि आरएसएस और बामसेफ दोनों की कहानी एक है। कमोवेश पात्र वही हैं। घटनाओं में थोड़ा अन्तर है। दोनों ही कपोल कल्पित पौराणिक कथाओं को इतिहास बता रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि एक “होलिका” को खलनायिका घोषित कर रहा है तो दूसरा पक्ष “होलिका” को अपनी बुआ बता रहा है। दोनों एक ही काल्पनिक कहानी को थोड़े अन्तरों के साथ तस्दीक कर रहे हैं।

इनके मनगढ़ंत इतिहास क विरुद्ध वास्तविक और विज्ञान सम्मत इतिहास भी है, जो इस प्रकार है-
त्योहारों का भोजन के उत्पादन से गहरा सम्बन्ध है। फसल जब पक कर तैयार होती है, तो किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। आदिम क़बीलाई समाज तो फसल पक कर तैयार होने को अपनी बहुत बड़ी कामयाबी के रूप में देखता था। इस कामयाबी पर जश्न मनाता था। खरीफ की फसल पर लोग जो त्योहार मनाते थे उस त्योहार का नाम दीवाली, दशहरा आदि रख दिया गया। रबी की फसल तैयार होने पर जो त्योहार मनाते थे, उसे कालान्तर में होली कहा गया। इसमें लकड़ियों के ढेर में आग लगाकर उजाला किया जाता था, उसके उजाले में जश्न मनाया जाता था।

आदिम कबीलाई समाज में बलात्कार या व्यभिचार नहीं होता था। उस दौर में यौनस्वेच्छाचार था। कोई भी पुरुष और स्त्री अपनी रजामंदी से कभी भी समागम कर सकते थे। लेकिन जब क़बीलाई समाज का पतन और दासप्रथा का उद्भव हुआ तो दासों की आजादी छिन गयी। परन्तु गुलामी प्रथा के दौर में भी जब फसल पककर तैयार हो जाती थी तो इस खुशी में दास-दासियों को थोड़ी आजादी थोड़े समय के लिए मालिकों द्वारा दी जाती थी। यह थोड़ी सी ढील उन्हें पुराने दिनों की याद दिला जाती थी। औरत मर्द सभी उन्मुक्त होते ही एक दूसरे से मिलते थे। लकड़ियों के ढेर में आग लगाकर उजाला करते, उस उजाले में हँसी-ठिठोली, हुड़दंग करते थे। थोड़े बदलाव के बावजूद यह परम्परागत त्योहार के रूप में सामंती दौर में भी बना रहा।

सामंती दौर में, विशेष रूप से सम्राट समुद्रगुप्त के शासन काल से ही पौराणिक कथाओं को धर्म से जोड़ कर परंपरागत त्योहारों/पर्वों को धार्मिक पर्व बना दिया जाने लगा। उन परम्परागत त्योहारों को पौराणिक किस्सों कहानियों से जोड़ा जाने लगा। तमाम घालमेल के बावजूद कुछ पुराने अवशेष आज भी मौजूद हैं।

आज भी होली में जो हँसी, ठिठोली होती है, वह एक हद तक ठीक हो सकता है मगर महिलाओं के विरुद्ध दुअर्थी एवं अश्लील गाने गा-बजाकर महिलाओं का अपमान करना सामन्ती संस्कार है, जो होली के नाम पर आज प्रचलन में है।

  • रजनीश भारती
    जनवादी किसान सभा
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें