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वित्त मंत्री के सामने महंगाई, मंदी और बेरोजगारी से निजात दिलाने का उपाय निकालने की चुनौती

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कन्हैयालाल घ. सराफ

बजट एक आर्थिक कसरत है। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह होकर आगामी वर्ष के लिए आय-व्यय का अनुमानित विवरण देना होता है, जिसे बजट कहते हैं। हालांकि आम आदमी के लिए बजट केवल आंकड़ों का जंगल है। इस समय बढ़ती महंगाई और सिकुड़ती आय से जनता त्रस्त है। डीजल, पेट्रोल और सीएनजी की कीमतें बढ़ने के कारण सफर करना महंगा हुआ है। पिछले एक साल में दूध, गेहूं, चावल, शक्कर, दाल, फल, तेल, साबुन, मंजन, कुकिंग गैस, बिजली-पानी, सब्जियां, मसाले- सब महंगे हो गए हैं। किचन का बजट गड़बड़ा गया है। देश की आर्थिक सेहत बिगड़ रही है। उसे वेंटिलेटर के सहारे जिंदा रखना होगा। बजट को लेकर आम जनता और अर्थशास्त्रियों से व्यापक चर्चा और संवाद करना जरूरी है। बजट से पहले इसका भी विश्लेषण किया जाना चाहिए कि पिछले बजट में किए गए आर्थिक सुधारों का क्या असर हुआ।

बजट के पहले या बाद में कोई अतिरिक्त कर लगाने की घोषणा न करें। बजट नौकरशाही और नेताशाही की बनाई एक फिल्म की तरह होती है, जो कभी सुपरहिट, तो कभी फ्लॉप हो जाती है। लेकिन फिल्म का नायक आखिर में निर्दोष ही निकलता है। कई बजट आर्ट फिल्मों की तरह निकलते हैं। यानी बजट भले ही अच्छा हो, वह सबको पसंद नहीं आता। सरकार को काला धन बाहर लाने के लिए ‘स्वैच्छिक आय घोषणा’ जैसी कोई पहल भी करनी चाहिए। इससे मनी लॉन्ड्रिंग कम होगी। इस प्रकार से प्राप्त धन का इस्तेमाल नई सड़कों, राष्ट्रीय महामार्गों, एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए हो। इसका प्रयोग प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए विशेष कोष बनाने में भी किया जा सकता है। 31 दिसंबर 2021 तक करदाताओं की संख्या 5 करोड 89 लाख थी, जो देश की आबादी को देखते हुए बहुत कम कही जाएगी। राजस्व में वृद्धि के लिए करदाताओं की संख्या बढ़ाना जरूरी है। इसके साथ राजस्व के लिए नए स्रोत तलाशना भी आवश्यक है। केवल जुबान और बयान से काम नहीं चलेगा। परिस्थिति के अनुसार, सरकार को अपना ‘टैक्स प्लान’ बनाना पड़ेगा। ईमानदारी से आयकर भरने वालों को सरकार परेशान न करे, लेकिन इरादतन करवंचन करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करे। माना कि सरकार की नीयत और नीति दोनों अच्छी है, लेकिन इसे साबित करने के लिए वह आगामी बजट जनता की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप लाए।

कृषि देश के विकास की रीढ़ है। किसानों की मजबूरी और जरूरतों को समझकर उन्हें गंभीर आर्थिक संकट से उबारने की जरूरत है। जिस उत्पादन पर श्रमिक का इस्तेमाल ज्यादा होता है, वहां न्यूनतम कर लगाए जाने चाहिए। असंगठित क्षेत्र, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, इस समय बुरी तरह प्रभावित है। यह 90 प्रतिशत श्रमिकों को रोजगार देता है। रोज कुआं खोदो, रोज पानी पियो वाला है यह उद्योग। देश के जीडीपी में इसका 50 प्रतिशत योगदान है। रोकड़ा संस्कृति इस क्षेत्र की आत्मा है। सारा कारोबार दिहाड़ी पर चलता है। इस क्षेत्र को राहत देना बहुत जरूरी है।

वित्त मंत्री को समझने की जरूरत है कि किसी भी चीज को उसकी ‘इलास्टिसिटी’ से अधिक तानने पर वह टूट जाती है। गुब्बारे को आप एक सीमा से अधिक फुलाएंगे तो वह फट जाएगा। इस समय जनता किसी भी अतिरिक्त कर बोझ को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। सच पूछिए तो बजट प्रस्ताव बिजली के तारों की तरह होते हैं। यदि ढंग से जुड़ जाएं तो रोशनी देते हैं। गलत ढंग से जुड़ने पर झटके देते हैं। महंगाई में अत्यधिक वृद्धि के मद्देनजर आयकर छूट सीमा बढ़ाकर 10 लाख किए जाने की जरूरत है। केवल शेयर बाजार का सूचकांक बढ़ाना ही अच्छे बजट का लक्षण नहीं होता। अच्छा बजट वह होता है, जिससे लोगों का जीवनस्तर ऊपर उठे। बजट घाटा कम करने के लिए मगरमच्छी दांत और व्हेल सी आंत वाली घाटे की सरकारी योजनाओं को बंद कर देना चाहिए।

देश का वस्त्र उद्योग सर्वाधिक रोजगार देता है। स्पिनिंग, वीविंग, डाईंग-प्रिंटिंग के कारखाने पूरे देश में फैले हैं। निर्यात के जरिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी इसका बहुत बड़ा योगदान है। इसके लिए अलग पैकेज देना चाहिए। शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न खरीदी पर जो जीएसटी लगता है, उसे हटा देना चाहिए, क्योंकि उन्हें कोई सेटऑफ नहीं मिलता। शराब, सिगरेट, गुटका इन चीजों से सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्राप्त होता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि राष्ट्र के विकास में इनका अभूतपूर्व योगदान है।

देश का पर्यटन उद्योग मुश्किल से गुजर रहा है। उसे बढ़ावा देने के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए उचित वातावरण बनाने की आवश्यकता है। बाजारों में धन की भारी कमी है। लिक्विडिटी का अभाव है। बाजारों का सेंटिमेंट बहुत ही खराब है। तैयार वस्त्र, चाय, हीरा और आभूषण उद्योग को बढ़ावा देना चाहिए क्योंकि ये निर्यात के जरिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायक होते हैं।

लेस-टैक्स हो बजट

देश की आर्थिक नीति दीर्घकालीन होनी चाहिए। एक स्वस्थ बजट वही होता है, जिससे राजस्व में बढ़ोतरी हो और उस राशि को देश के विकास में लगाया जाए। आगामी बजट में पूंजी का उचित वितरण और साधनों में सबकी भागीदारी के लिए सरकार को उचित दिशा तलाशनी होगी। आय कब बढ़ेगी? महंगाई कब घटेगी? मंदी का कोहरा कब छंटेगा? ये प्रश्न जनता के बेताल सत्ता में बैठे विक्रमादित्यों से पूछ रहे हैं। बजट के माध्यम से वित्त मंत्री को इन सवालों का जवाब देना होगा। गतवर्ष का बजट पेपरलेस था। उम्मीद की जाए इस बार का बजट ‘टैक्सलेस’ नहीं तो ‘लेस टैक्स’ वाला जरूर होगा।

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