अग्नि आलोक
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हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई के रूप में न जीकर,मानव बनकर जीता हूँ मैं !

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पत्थर की मूर्तियों को पूजने के बजाय
सजीव मानवता को पूजता हूँ मैं !
काल्पनिक देवताओं को न मानकर,
फुले,साहू,अम्बेडकर को पढ़ता हूँ मैं !
छाती ठोककर बोलता हूँ मैं,
असत्य को नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !

   पोथी पुराण पढ़ने के बजाय
   शिवाजी को पढ़ता हूँ मैं !
   पत्थर के सामने क्यों झुकूं ?
   जीजा बाई,सावित्री,रमाबाई के 
   सामने नतमस्तक होता हूँ मैं !
   छाती ठोककर बोलता हूँ मैं,
   असत्य नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !

   पसीने की कमाई दानपेटी में डालकर,
   ब्राह्मणों के घर नहीं भरता हूँ मैं !
   प्यासे को पानी, भूखे को अन्न देकर,
   उनमें ही देव खोजता हूँ मैं !
   छाती ठोककर बोलता हूँ मैं,
   असत्य नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !
   हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई के रूप में न                 जीकर,
   केवल और केवल मानव बनकर जीता हूँ मैं !

    धर्मों के पाखंडों को न मानकर
    मनुष्यता को जपता हूँ मैं !
    छाती ठोककर बोलता हूँ मैं,
    असत्य नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !
    कर्तव्यनिष्ठ मानव से पत्थर को
    श्रेष्ठ नहीं समझता हूँ मैं !
    मंत्र,होम,हवन,कर्मकांड को पैरों तले                    रौंदकर,
    अपने विवेक पर भरोसा रखता हूँ मैं !
    छाती ठोककर बोलता हूँ मैं,
   असत्य नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !

   बिल्ली के रास्ता काटने से कभी रुकता नहीं, 
   सीधे मंजिल पर पहुंचता हूँ मैं !
   अंधश्रद्धा को मिट्टी में रौंदकर,
   विज्ञानवाद स्वीकारता हूँ मैं !
   छाती ठोककर बोलता हूँ मैं ! 
   असत्य नकारने वाला नास्तिक हूँ मैं !

   -डॉक्टर नरेंद्र दाभोलकर

  मराठी से हिन्दी में अनुवाद-श्री चन्द्र भान पाल जी,संपर्क - 7208217141,मुंबई, महाराष्ट्र

    संकलन - निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क - 9910629632

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