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 सिर्फ खैरात बांटने से नहीं बन पाएगी बात

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देश में संपत्ति के पुनर्वितरण को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। कई जानकार इसे अच्छी बात मान रहे हैं। हालांकि, भारत के संदर्भ में यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की चर्चा शुरू हुई है। यह मुद्दा पहले भी उठता रहा है। हालांकि, इसे जानबूझ कर टाला जाता रहा है।

धीरज नैय्यर:

अच्छी बात है कि भारत में आखिरकार Redistribution (पुनर्वितरण) पर बहस हो रही है। यह मुद्दा लंबे समय से बना हुआ है, लेकिन इसे जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा था। औपनिवेशिक युग और उससे पहले की ऐतिहासिक असमानता ने एक लंबी छाया छोड़ी है और आजादी के बाद भारत सरकार ने जो समाजवादी नीतियां अपनाईं, उसका भी असर हुआ।

ऐसे देश में जहां ज्यादातर लोग अमीर नहीं हैं, redistribution राजनीतिक बयानबाजी का एक जरिया है। ऐसे देश में जो अमीर नहीं है, वहां इस तरह की पहल नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि इसमें केवल एक चीज जो redistribute होती है, वह है गरीबी। आइए, पुनर्वितरण के बारे में पांच जरूरी बातों पर नजर डालते हैं।

पहली बात, राष्ट्रीय संपत्ति क्या है, जिसका पुनर्वितरण होता है? यह दरअसल निजी संपत्ति का एक अंश है, जिसे टैक्स के रूप में भारत सरकार लेती है। पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर का एक प्रसिद्ध वाक्य है कि सरकारी पैसा जैसी कोई चीज नहीं होती। असल में यह टैक्सपेयर्स का पैसा होता है।

काला धन बढ़ेगा

वेल्थ क्रिएट करते हैं उद्यमी। मध्य वर्ग और यहां तक कि निम्न मध्य वर्ग भी बचत करता है। फिर वह इसे जमीन, गोल्ड और इक्विटी में निवेश करता है। यह पैसा बहुत मेहनत से कमाया जाता है। अगर बहुत अधिक टैक्स लिया जाएगा तो लोग धन जुटाने के लिए क्यों प्रोत्साहित होंगे और अगर हुए भी तो वे अनौपचारिक जरियों से कमाई करेंगे। किसी भी भारतीय को ब्लैक इकॉनमी के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। हां, सरकार के पास रुपये छापने और उसे बांटने का अधिकार है, लेकिन इससे केवल महंगाई बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था तबाह होगी।

असली मतलब

क्या Redistribution का अर्थ है अमीरों पर टैक्स लगाना और गरीबों को देना? पुनर्वितरण का पहला जरिया है टैक्स सिस्टम। डायरेक्ट टैक्स जैसे कि इनकम टैक्स प्रोग्रेसिव होता है। इसी वजह से जो लोग ज्यादा कमाते हैं, वे ज्यादा टैक्स देते हैं। लेकिन, इनडायरेक्ट टैक्स का प्रोग्रेसिव होना जरूरी नहीं है। आप अमीर हों या गरीब, जब कोई सामान खरीदते हैं या सर्विस लेते हैं, तो उस पर एक जैसा टैक्स देना पड़ता है। भारत में indirect taxes का हिस्सा direct taxes से बहुत कम नहीं है।

फायदा किसे

तार्किक रूप से redistribution का फायदा गरीबों को मिलना चाहिए। लेकिन, भारत की राजनीतिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होता। यहां जाति और धर्म को लेकर redistribution के बारे में तर्क दिए जाते हैं। साथ ही, उन समुदायों की पहचान की जाती है, जो ऐतिहासिक सामाजिक भेदभाव के चलते सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। यह तरीका बेअसर हो सकता है, क्योंकि इन सभी कैटिगरी में क्रीमी लेयर है। यह क्रीमी लेयर बाकी समुदाय के लाभ हथिया लेती है। इसके अलावा व्यवहार में भी देखें तो redistribution के फायदे बिचौलिये हड़प कर लेते हैं।राह की रुकावट

वर्तमान सरकार ने अपनी ओर से प्रयास किया है कि योजनाओं का फायदा सही लोगों तक पहुंचे, बीच में ही बिचौलिये हक न मार ले जाएं। लेकिन, गड़बड़ी करने का रास्ता फिर खोजा जा सकता है। redistribution आमतौर पर तब अच्छा काम करता है, जब स्टेट कैपेसिटी ज्यादा हो। भारत में इरादा अच्छा है, लेकिन स्टेट कैपेसिटी कम।

राहत पर खर्च

Redistributed amount किस पर खर्च किया जाता है? यह पैसा या तो सशक्तीकरण में लगाया जा सकता है या फिर राहत देने में। राहत देने का मतलब है कि बिना किसी काम के कैश ट्रांसफर या फिर मनरेगा पर खर्च, जिसमें कोई वास्तविक प्रोडक्टिव वर्क नहीं होता।

बेहतर जीवन

सशक्तीकरण का मतलब है शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, बिजली, साफ पानी वगैरह पर खर्च करना। इन सबसे एक आम भारतीय का जीवन बेहतर होता है। जब इस रणनीति के साथ पुनर्वितरण किया जाता है, तो परिणाम बेहतर होते हैं। पूर्वी एशिया इसका प्रमुख उदाहरण है। पश्चिम खासकर यूरोप ने खैरात पर भारी खर्च किया। इसका असर पड़ा उनकी अर्थव्यवस्था की प्रोडक्टिविटी और वर्क कल्चर पर।

कितना जरूरी

Redistribution के पक्ष में जो बातें हैं, उनसे इकॉनमिक सिस्टम के बारे में क्या पता चलता है? असल में, इसमें सरकार को प्राथमिकता दी जाती है, मार्केट को नहीं। इस व्यवस्था से विकास की दर तेज नहीं होती। किसी भी भारतीय को इसके बारे में ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। आखिर, गैर-जिम्मेदार खर्चों के कारण 1990-91 में भारत अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। अतीत में देश ने redistribution की जो नीति अपनाई थी, उसका खामियाजा उसे 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भी भुगतना पड़ा। 2010 के दशक के पहले हिस्से में जो आर्थिक संकट था, उसका संबंध राजकोषीय घाटे से था। गैरजरूरी टैक्स ने भारत को निवेश के लिए अनाकर्षक बना दिया था।

सही नीति

वर्तमान सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स को एशिया के दूसरे प्रतिस्पर्धी देशों के बराबर किया। अब टैक्स को खैरात से ज्यादा प्रोडक्टिव इन्वेस्टमेंट पर खर्च किया जा रहा है। इसी रास्ते पर चलते रहने की जरूरत है, क्योंकि भारत तेजी से विकास के लिए अनुकूल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य का लाभ उठाने को तैयार है।

(लेखक Vedanta के चीफ इकॉनमिस्ट हैं)

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