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समझिये दुनियावी और ध्यान-तंत्रीय संभोग का अंतर्संबंध

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 ⚡अनामिका, प्रयागराज 

   इंडिया के लिए, मेडिटेशन रिसर्च फाउंडेशन, मियामी फ्लोरिडा, यूएसए से अथराइज्ड मेडिटेशन ट्रेनर डॉ. विकास मानवश्री के शब्दों में : “कर्मयोग, सांख्ययोग, भक्तियोग, प्रेमयोग, ध्यानयोग, अष्टांगयोग चाहे जन्मों बाद परमानंद/परमतृप्ति/परमात्मा/मोक्ष यानी पूर्णत्व की मंज़िल दें लेकिन संसर्ग-योग त्वरित रिजल्ट देता है। स्वस्थ संभोग टाइमलेश/इगोलेश कर अद्वैत बना देता है। ‘समग्र प्रेम आधारित कम्प्लीट मिक्सअप’ अर्धनारीश्वर की अवस्था देकर सहज ही समाधि की अनुभूति करा देता है। यही कारण है कि काम को 4 पुरुषार्थ में मोक्ष से पहले रखा गया। यही कारण है कि तमाम ऋषि-मुनि और भगवान कहे गए लोग भी ‘संभोग-योग’ की साधना किये।”

        यौनाग्नि शमन हेतु स्थूल संसर्ग और ध्यान-तंत्र अधारित दिव्य संसर्ग मे जमीन -आसमान का अन्तर है। बाहर से देखने में तो दोनो एक जैसे दिखते हैं। स्त्री- पुरुष के मध्य सम्भोग क्रिया के सम-आधार लगते हैं पर दोनो में ‘भीतरी अनुभूति और ऊर्जा तल पर’ एक- दूसरे के विपरित घटता है। दोनो शक्तियां परिणाम भी विपरित ही रचती हैं। 

      स्थूल मानव काम विपरीत-लिंगी सम्मोहन है, जिसकी विविध परिणतियाँ हैं : चंद मिनट में काम तमाम कर खिसकना है। चरम का केवल सपना देखना है। बाहर, बस ज़िस्म पर बहना है। पतन के गर्त मे गिरना है। खण्डित होना है। स्वयं से टकराना है। स्त्री को मन से और उसके परिणाम में तन से भी रोगी बनाना है। मन्दबुद्धि, विकृति सोचवाली, गैर-समाजोपयोगी सन्तान निकालने  की फैक्ट्री स्त्री को बनाना है या फिर कंडोम में स्खलित होकर वीर्य बाहर फेंक देना है।

   ध्यान-तंत्र बेस काम समग्रता रचता है। सपाट सीधा उथला, महज शरीर से शरीर मिलन, चरमता रहित स्वखलन यहाँ नहीं है। यहाँ हर बार तृप्ति भरा संगम है। स्खलन हो तो बिना गहराई रचे नही हो। यह सम्मोहन रहित, मन-मष्तिक -रूह और फिर तन के कोश~कोशिका को जीवन्त करते सम्पन्न हुए होता है। मेडिकल साइन्स कहती है, “आज 99% स्त्रियां कम्प्लीट नेचुरल आर्गेज्म का अनुभव तो क्या अहसास भी नहीं कर पाती. इतने नामर्द हैं की बेचारी अतृप्त ही मर जाती हैं”. 

         विश्वपटल पर लव एंड सेक्स के गॉड माने जाने वाले डॉ. मानवश्री को सिर्फ़ एक रात लेकर देखें : अक्ल, शक्ल, नश्ल सब बदल जाएगी. जिंदगी खिल उठेगी. दुनिया के सारे सेक्स से घिन आने लगेगी. जब तक जीएंगी, आनंदित रहेंगी. आपका तन मन उन्हीं का स्वाद मांगेगा और पाता भी रहेगा.

     मेडिटेशन विद्या से वे अपने स्पर्म डिस्चार्ज पर कंट्रोल रखते हैं. जब पूरी तरह गरम होकर, पिघलकर, निचुड़कर आप परम आनंद से बेसुध होने लगेंगी, “बस..बस.. बस प्लीज माई गॉड..” बोलेंगी तभी वे अपना वीर्य-अमृत छोडेंगे और रुकेंगे. अपनी किसी भी सर्विस के बदले वे कोई चार्ज नहीं लेते हैं. 

      अगर आपका पार्टनर कहता है की वो आपसे प्यार करता है, तो आपकी वास्तविक खुशी-तृप्ति के लिए आपको ख़ुद उनके पास लेकर जाना चाहिए. इतना सुबूत तो देना ही चाहिए उसे आपसे अपने प्यार का. अपने पार्टनर को उनसे आप अपने काबिल बनवा भी सकती हैं. 

     कामाग्नि और तृप्ति से उठी शक्तिशाली ऊर्जा का परस्पर समाहित होना और इस ऊर्जा का हमारे ही व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाना मेडिटेटिव सेक्स का लक्ष्य है। स्थूल काम और ध्यान-तंत्र बेस काम एक- दूसरे के विपरित आयाम हैं। दोनो मे कोई सम्बन्ध नही है। कोई मेल नही।  

     ध्यान-तंत्र आधारित संभोग में शक्तिशाली ऊर्जा का प्रवाह उठता है जो हेल्थ, व्यूटी और सेक्सुएलिटी को डेवेलोप करती है। सामान्यता 60 से  90 मिनट से पहले वीर्य स्खलित नही होता। कितनी ही हॉटेस्ट, पाषाण, ठंडी या मुर्दा स्त्री हो : इतने में बेहद गरम होकर, पिघलकर, निचुड़कर समग्र तृप्ति की अनुभूति में डूब ही जाती है। इस प्रकार मेडिटेटिव सेक्स सुदीर्घ तृप्ति रचता है।_

दो विपरित आयाम मिलकर आनंदित मानव को रचते हैं :

   1.स्वरूप आयाम

मष्तिक के उच्च भाग में आत्म-केन्द्र!

   2.अवरोधक आयाम

भ्रू-मध्य मे स्थूलता अवरोधक केन्द्र!!

      दोनो की ऊर्जा क्षेत्र और आयाम अलग हैं। एक लुप्त होता है तो दूसरा स्थिति लेता है। ध्यानतंत्रिय संभोग दोनो आयामों को अलग-अलग कर पृथक स्थिति लेने देता है। विकृत नतीजे का मूल कारण ऊर्जा नहीं उठना यानी उसका मृतप्राय होना होता है।

    स्वस्थ संभोग की दशा में एक ही समय में नर-मादा दोनों में ऊर्जा प्रवाहित होती और एक-दूसरे की यह ऊर्ज़ा एक-दूसरे के रोम-रोम में भरती रहती है। लिंग को मुंह-गुदा-योनि कहीं भी स्त्री प्रयुक्त करे : परिणाम में कोई फ़र्क नहों पड़ता है।

       सक्षम पुरुष के ध्यान-तंत्र आधारित संभोग मे लिंग साक्षात शिवलिंग की तरह दिव्य व पाजिटिव ऊर्जा-चक्र से संयुक्त होता है : क्योकि वह नेगेटिव ग्रहण तल परे हो चुका होता है। स्त्री संवेदनशील- ग्रहणशील हो तो तरंगों की सिहरन से भर उठती है। 

     प्रेम सर्वाधिक अहम है। आपकी परिपूर्ण सत्ता जब तक साथी की तृप्ति के लिए दांव पर न लग जाए, तब तक ‘स्व’रुप से कोई मिलन नहीं होगा। आत्मतत्व या परमात्मा इससे कम पर नहीं मिल सकता। यहां खुद को खोने की पूरी हिम्मत चाहिए। दीवानगी चाहिए। मस्ती चाहिए। 

    रही क्षमता की बात तो, वह हम आप में जाग्रित-विस्फोटित करते हैं। न्यूनतम 15 दिन का समय होना चाहिए साधक- साधिका के पास। इसके लिए कपल्स को एक साथ मेडिटेटिव सेक्स की टेक्निक सीखनी होती है। प्रयोग उपरांत प्राप्त स्तर की डेली रिपोर्ट हमें देनी होती है। उसी के आधार पर हम अगले दिन का पैटर्न सेलेक्ट करते हैं। ध्यान शिविर में शुल्क कुछ- भी नहीं होता है। अपने व्यक्तिगत खर्चे की व्यवस्था प्रतिभागी करते हैं : ये भी हमसे चाहना, हमारे साथ ज्यादती होगी। होम सर्विस स- शुल्क है, जो आवागमन-भोजन-आवास के अतिरिक्त पांच हजार रुपये प्रतिदिन होती है।

      पृथ्वी पर करोड़ों-करोड़ लोग अध्यात्म-ध्यान, तृप्ति-मुक्ति संबंधित शब्दों का उच्चारण-प्रसारण कर रहे  हैं, लेकिन इसका विज्ञान नही जानते। जान भी जाएं तो जानने मात्र से कुछ नही होगा। अनुभव जरूरी है। इसके लिए तन-धन नहीं, हृदय को दांव पर लगाना पडेगा। आधे-आधे मन से न होगा। स्पष्ट निर्णय चाहिए। यह भौतिक उपलब्धि की बात नहीं है कि कितना भी पैसा दो और अर्जित कर चलते बनो।

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