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आख़िर गांधी को निशाना क्यों बनाया जा रहा है !

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शिवानन्द तिवारी, पूर्व सांसद

आख़िर गांधी को निशाना क्यों बनाया जा रहा है ! उनकी हत्या तो 73 वर्ष पूर्व हो गई थी. जीवित गांधी किसी व्यक्ति या विचारधारा के रास्ते में अवरोध थे यह बात तो समझ में आती है. लेकिन मृत गांधी पर एक समूह इतना हमलावर क्यों है ? इसकी एक ही वजह समझ में आती है. जिस विचारधारा ने गांधी को अपने रास्ते का सबसे गंभीर अवरोध मानकर अपना मार्ग निष्कंटक बनाने के लिए उनकी हत्या की थी, उनका वह मक़सद पुरा होता हुआ दिख नहीं रहा है. मृत गांधी भी उनके और उनके जैसे विचारधारा के रास्ते में उसी तरह अवरोध के रूप में खड़े हैं जैसे जीवित गाँधी खड़े थे.
 लेकिन कोई लाख छटपट करे, गांधी को मिटा पाना संभव है क्या ! माना जाता है कि गांधी ने भारत को आजादी दिलाई थी. लेकिन कृष्णनाथ जी कहते हैं कि यह उनकी महत्वपूर्ण देन नहीं थी. क्योंकि बगैर गांधी के भी कई मुल्क उस समय आजाद हुए थे. तब अधिकांश दुनिया उनको आज भी महान क्यों मानती है ! दरअसल दुनिया को गांधी ने एक नई ताबीज दी थी, नया मंत्र दिया था. सत्याग्रह, सिविल नाफरमानी और अहिंसा का ताबीज. बड़े से बड़े ताकतवर जुल्मी के खिलाफ कमजोर से कमजोर आदमी भी खड़ा होकर कह सकता है कि, नहीं, अब तुम्हारे अन्याय को सहन नहीं करूंगा. इसके एवज में तुम जो सजा मुझे दो, वह भुगतने के लिए मैं तैयार हूं. इसके पूर्व दुनिया के सामने विरोध का एक ही रास्ता था. बंदूक का रास्ता. जो कमजोर लोगों का रास्ता नहीं हो सकता था. दुनिया भर में इसका नजीर दिखाई देता है. जहां-जहां भी अन्याय, जुल्म और भेदभाव के विरुद्ध नागरिक आजादी और बराबरी के लिए संघर्ष हो रहा है वहाँ प्रेरणा के स्रोत के रूप में गांधी ही नजर आते हैं. इसलिए भले ही गांधी के शहादत दिवस के मौके पर कुछ सिरफिरे उनका पुतला बनाकर उसको गोली मारने का नाटक करें. उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे के जिंदाबाद का नारा लगाएं या फिर उनका उपहास उड़ाकर उन्हें मिटाने की कोशिश हो, गांधी तो जिंदा रहेंगे. जैसे हत्या के 73 वर्ष बाद आज भी गांधी जिंदा हैं और वैसे लोगों के छाती पर सवार हैं जो नफरत, घृणा और भेदभाव पर आधारित भारत बनाने का प्रयास कर रहे हैं. 

शिवानन्द तिवारी, पूर्व सांसद

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