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 कल्याणकारी वामपंथी विचारधारा से इतना खौफ क्यों?

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मुनेश त्यागी 

     आजकल भारत में चुनाव का माहौल है। सारी पार्टियां अपने-अपने घोषणा पत्र लेकर जनता के बीच में हैं। अधिकांश पार्टियां जनता के सामने अपने पिछले सालों  के किए गए कार्यों का लेखा-जोखा जनता के सामने रख रही हैं और जनता से वोट मांग रही हैं। इन चुनावों में अधिकांश दल एक दूसरे की नीतियों में, उनके कार्य प्रणालियों में खामियां निकल रहे हैं। इन चुनावों में मुख्य मुकाबला इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन में है। 

    एनडीए गठबंधन की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाल रखी है। इन चुनावों में शासक पार्टी की कार्यप्रणाली काफी असंवैधानिक और गरिमा विहीन होती जा रही है। मोदी के नेतृत्व में उनके अधिकांश नेता इंडिया गठबंधन पर मनमाने, बेबुनियादी और झूठे आरोप लगा रहे हैं, जो इंडिया गठबंधन के लोगों ने कहा ही नहीं और जो बातें उनके घोषणा पत्र में नहीं लिखी हुई हैं, प्रधानमंत्री मुख्य रूप से उन पर मनमाने तौर से हमले कर रहे हैं।

      प्रधानमंत्री की इस मनमानी कार्य प्रणाली के खिलाफ कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआईएम और रिटायर्ड सिविल सर्विसेज आईएएस आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के संगठन ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखे हैं और मांग की है कि प्रधानमंत्री की इन मनमानी कार्यवाहियों के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाए, क्योंकि प्रधानमंत्री के ये भाषण चुनावी मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट के खिलाफ हैं और इनकी वजह से समाज में जाति और धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है, तमाम तरह के झूठ फैलाये जा रहे हैं और साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ा जा रहा है। अपने चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री मुख्य रूप से कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों और वामपंथी विचारधारा पर हमले कर रहे हैं।

     उनका कहना है की इंडिया गठबंधन वामपंथी विचारधारा से प्रभावित है और इस प्रकार वे वामपंथी पार्टियों पर मनमाने और गुमराह करने वाले आरोप लगा रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर भारत के प्रधानमंत्री को वामपंथी पार्टियों या वामपंथी विचारधारा से क्या परेशानी है? यहां पर सही बात यह है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वाम्पंथी विचारधारा में, उनकी कार्य प्रणाली में और उनके विचारों में, जमीन आसमान का फर्क है। यहीं पर हिंदुत्ववादी, मनुवादी और आरएसएस के विचारधारा एवं वामपंथी विचारधारा के बीच मौजूद अंतर को जानना सबसे ज्यादा जरूरी है

     भारत के प्रधानमंत्री पूर्ण रूप से आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं। वे स्वयं को स्वयं सेवक भी कहते हैं। आरएसएस पूर्ण रूप से मनुवादी और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकत है जिसका समता, समानता, धर्मनिरपेक्षता, जनतांत्रिक और समाजवादी मूल्य में विश्वास नहीं है। वह तमाम तरह की सामंती विचारधारा और पूंजीवादी व्यवस्था के गठजोड़ की पोषक है, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने में उसका कोई विश्वास नहीं है, हजारों साल से चले आ रहे शोषण, अन्याय, जुल्मों सितम, गैर बराबरी, ऊंच-नीच की भावना और छोटे-बड़े की नकारात्मक सोच को दूर करने में उसका कोई विश्वास नहीं है। वह जातिवादी विभाजन को खत्म करना नहीं चाहती बल्कि उसे बनाए रखना चाहती है, वह जनतंत्र, समाजवाद और गणतंत्रवादी व्यवस्था के खिलाफ है। वह भारत में चतुर्वर्ण व्यवस्था एवं जातिवादी मानसिकता एवं विचारधारा को बनाए रखना चाहती है और वह मनुस्मृति में पूर्ण रूप से विश्वास करती है। मनुवादी व्यवस्था मनुस्मृति की सोच पर आधारित है। आजादी के दौरान आरएसएस के बड़े नेताओं का कहना था कि “इस देश के तीन दुश्मन हैं,,,,मुस्लिम, ईसाई और कम्युनिस्ट।” तभी से वामपंथी विचारधारा के खिलाफ, यह अमानवीय और साम्प्रदायिक मानसिकता, पुष्पित और पल्लवित होती चली आ रही है।

     मनुस्मृति में लिखा हुआ है कि यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार वर्ण हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही देश के और देश में मौजूद सब चीजों के मालिक हैं, बाकी 85% शूद्रों की जनसंख्या जिसमें एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाएं शामिल हैं, उनको धन-धान्य और शस्त्र रखने का कोई अधिकार नहीं है, जमीन के मालिकाना हक नहीं हैं, उन्हें शिक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं है। उनका काम है सिर्फ और सिर्फ उपरोक्त ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की सेवा करना। इसी मनुवादी सोच और व्यवस्था का परिणाम था कि आजादी से पहले अधिकांशतः एससी, एसटी, ओबीसी, किसानों, मजदूरों और अधिकांश महिलाओं को पढ़ने का, नौकरी करने का, जमीन रखने का, धन-धान्य और हथियार रखने का कोई अधिकार नहीं था। गजब की बात है कि इस 90% आबादी को जो भी अधिकार मिले हैं, वे सब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मिले हैं। इसके बावजूद भी असली हकीकत यह है कि इनमें से बहुत बड़ी जनसंख्या को  आज भी तमाम तरह के बुनियादी अधिकारों से वंचित रहना पड़ रहा है।

      यहीं पर एक और कमाल की बात देखिए कि भारत के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज लुटेरे, हिंदू मुस्लिम एकता से पूरी तरह से डर गए थे। जनता की इस एकता को तोड़ने के लिए उन्होंने 1906 और 1907 में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की स्थापना की। इसके बाद भारत की जनता की एकता को हिंदू मुसलमान के नाम पर बांटने और तोड़ने के लिए 1925 में आरएसएस का निर्माण हुआ और कमाल की बात देखी कि पिछले लगभग 120 साल से भारत की तमाम हिंदूत्ववादी और सांप्रदायिक ताकतें जनता की एकता तोड़ने के अभियान में लगी हुई हैं। इनका जनता की बुनियादी समस्याओं को हल करने में कभी भी कोई योगदान नहीं रहा है। इन्होंने कभी भी भारत की आजादी के आंदोलन में भाग नहीं लिया। आजादी के आंदोलन के समय ये दोनों ताकतें भारत को गुलाम बनाने वाले लुटेरे अंग्रेजों के साथ थीं और भारत को आजादी मिलने के बाद भी ये ताकतें, भारत के पूंजीवादी और सामंती शाषक वर्ग के गठजोड़ के साथ हैं और आज तो ये तमाम हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतें देश और दुनिया के समस्त लुटेरे पूंजीपति साम्राज्यवादी और सामंती ताकतों के साथ गठजोड़ किए हुए हैं।

      वामपंथी विचारधारा का मूल स्रोत और उदगम स्थान यूरोप है। सबसे पहले वामपंथी विचारधारा का जन्म फ्रांस में हुआ था जब 1789 में फ्रांसीसी क्रांति में वहां के मजदूर और किसानों ने सामंती व्यवस्था का तख्ता पलट कर फ्रांसीसी क्रांति की थी। उसी समय वहां समाजवादी विचारधारा का जन्म हुआ था। मगर वह मूल रूप में काल्पनिक समाजवादी विचारधारा ही बनी रही। इस काल्पनिक समाजवादी विचारधारा को कभी धरती पर न उतारा जा सका था। उसको असली वैज्ञानिक समाजवादी वामपंथी व्यवस्था कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने बनाया, जब उन्होंने स्थापित किया कि “दुनिया में दो वर्ग हैं पूंजीपति और मजदूर वर्ग, जिसमें लगातार आंतरिक वर्ग-संघर्ष बना रहता है और इस वर्ग संघर्ष की बदौलत एक दिन मजदूर वर्ग संगठित होकर पूंजीपति वर्ग का तख्ता पलट देगा और मजदूरों का राज्य काम हो जाएगा।” मार्क्स और एंगेल्स के इन विचारों को सबसे पहले लेनिन ने कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में रूस 1917 में धरती पर उतारा और “1917 की रूसी क्रांति” के बाद दुनिया में पहली दफा किसानों और मजदूरों का राज्य कायम हुआ। इस किसानों मजदूरों के राज्य ने वामपंथी विचारधारा की मूल नीतियों को सबसे पहले धरती पर उतारा और रूसी क्रांति के चंद वर्षों में रूस के समस्त किसानों मजदूरों तमाम मेहनतकशों और पूरी जनता को रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार मोहिया करा दिये गये।

      इस वामपंथी क्रांति का पूरी दुनिया पर बहुत गहरा असर पड़ा। भारत की जनता और आजादी का आंदोलन भी से अछूत न रहे। भारत में सबसे पहले “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा मौलाना हसरत मोहानी ने दिया और “पूर्ण स्वतंत्रता” की मांग की। रूसी क्रांति के विचारों से प्रभावित होकर भारत के क्रांतिकारियों ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में “हिंदुस्तानी समाजवादी गणतांत्रिक संघ” का निर्माण किया गया, जिसमें भगत सिंह की पहल पर “समाजवादी” शब्द जोड़ा गया और भारत में “समाजवादी व्यवस्था” कायम करने की बात की गई। इन्हीं भगत सिंह ने 2 फरवरी 1931 को लिखे अपने लेख में कहा था कि “अगर मैं जिंदा रहा तो मैं एक पार्टी का निर्माण करूंगा, जिसका नाम “कम्युनिस्ट पार्टी होगा।” भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद भगत सिंह के अधिकांश साथियों को काले पानी की सजा दी गई और उनके तमाम साथी वामपंथी विचारधारा में शामिल हो गए और बाद में इन सब ने कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर कम्युनिस्ट विचारधारा के लिए काम किया और इसे भारत में आगे बढ़ाया।

      इसके बाद रूसी क्रांति के समाजवादी मूल्यों और उपलब्धियों से प्रभावित होकर प्रेमचंद ने अपने उपन्यास में “पूरे इंकलाब” की बात की। आजादी के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने घोषणा की थी कि “वे भारत में धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक, समाजवादी, गणराज्य की स्थापना करेंगे।” रूसी क्रांति की उपलब्धियां से प्रभावित होकर, रूसी क्रांति के महत्वपूर्ण वामपंथी मूल्यों और सिद्धांतों को भारत के संविधान में सम्मिलित किया गया। इसी के साथ-साथ भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का निर्माण हुआ और उसने वामपंथी विचारधारा के तहत वामपंथी नीतियों के आधार पर समाज परिवर्तन की बात की।

      भारत की वामपंथी विचारधारा और उसकी समर्थक पार्टियां, हजारों साल से चले आ रहे इस शोषण, जुल्म, अन्याय, वर्णवादी व्यवस्था, ऊंच-नीच की सोच और छोटे-बड़े की मानसिकता को खत्म करना चाहती है। वे पूरी तरह से समता, समानता, न्याय, बराबरी, आपसी भाईचारे में विश्वास करते हैं। वह सबको सस्ता और सुलभ न्याय देने की वकालत करती है, भारत के नौजवानों को अनिवार्य रोजगार देने की मांग करती है। वामपंथी विचारधारा भारत के सारे नागरिकों को, सारे छात्रों क्षात्राओं को मुफ्त, अनिवार्य आधुनिक शिक्षा में शिक्षित प्रशिक्षित करना चाहती है, उन्हें एक आधुनिक नागरिक बनना चाहती है। वामपंथी विचारधारा के समर्थकों का मानना है कि हमारा इस देश और दुनिया में कोई दुश्मन या शत्रु नहीं है, हमारी किसी से कोई निजी दुश्मनी नहीं है।

      वामपंथी विचारधारा का मानना है कि भारत के प्रत्येक नौजवान को, प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य रोजगार मिलना चाहिए और रोजगार देना सरकार की जिम्मेदारी है। उसका मानना है कि जब तक प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य रोजगार नहीं दिया जाता, तब तक किसी भी तरह की आजादी का कोई मतलब नहीं है। एक बेरोजगार गरीब और निर्धन व्यक्ति के लिए किसी भी प्रकार की आजादी के कोई मायने नहीं हैं। वामपंथी विचारधारा का मानना है की जमीन सबकी है, इस पर सबका अधिकार होना चाहिए और यह सारी जनता के विकास के लिए इस्तेमाल की जानी चाहिए। 

      वामपंथी विचारधारा का मानना है कि भारत के तमाम प्राकृतिक संसाधन, भारत की सारी जनता के कल्याण और विकास के लिए प्रयोग किए जाने चाहिएं, उन पर चंद पैसे वालों का, कुछ गिने-चुने धन्ना सेठों का या चंद बड़े पूंजीपतियों का ही एकाधिकार नहीं होना चाहिए। वामपंथी व्यवस्था का मानना है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को प्रत्येक वादकारी को सस्ता और सुलभ न्याय मिलना चाहिए। इसके लिए पर्याप्त संख्या में अदालतें होनी चाहिएं, पर्याप्त संख्या में जज, न्यायिक कर्मचारी और स्कैनों होने चाहिएं और मुकदमे का निस्तारण एक निश्चित सीमा में होना चाहिए। वह 20-20, 30-30 सालों से लंबित मुकदमा के पड़े रहने की समर्थक नहीं है।

     वामपंथी विचारधारा की पार्टियों और समर्थकों का मानना है कि धन का समुचित वितरण होना चाहिए। भारत के प्रत्येक नागरिक पर इतना धन होना चाहिए कि वह अपनी शिक्षा, सुरक्षा, भोजन, इलाज, विवाह और बुढ़ापे का खर्च निकल सके। भारत का कोई भी नागरिक गरीबी और अभावों का शिकार न रहे। भारत के वामपंथियों का मानना है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को सस्ता और सुलभ न्याय मिले, सबको अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा मिले, सबको मुफ्त सरकारी इलाज की व्यवस्था हो, सारे बुजुर्गों को बुढ़ापे की पेंशन मिले, भारत के समस्त नौजवानों को रोजगार मिले या बेरोजगारी भत्ता मिले।

      इस विचारधारा का मानना है कि भारत के समस्त किसानों को उनकी फसलों के वाजिब दाम की गारंटी हो, उनकी फसलों के दाम का समय से भुगतान हो। भारत के वामपंथी चाहते हैं कि भारत के समस्त मजदूरों को न्यूनतम वेतन मिले, श्रम कानूनों का समुचित पालन हो, समस्त कर्मचारियों को यूनियन बनाने का अधिकार हो। भारत के वामपंथी चाहते हैं कि यूनियन चलाने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को पूंजीपतियों द्वारा मनमाने रूप से नौकरी से ना निकल जाए।

       भारत के तमाम वामपंथी चाहते हैं कि भारतीय संविधान का संरक्षण हो, पूंजीवादी जनतंत्र के स्थान पर, जनता का जनवाद कायम हो, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का सही पालन हो, सरकार धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन न करें। वे चाहते हैं कि भारत में ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति का समुचित प्रचार प्रसार हो, लोगों को झूठ कपट, अंधविश्वासों, धर्मांताओं और तमाम तरह के पाखंडों से बाहर निकाला जाए और वे अपनी तमाम समस्याओं के समाधान के लिए किसी भी देवी देवता, भगवान, अल्लाह, खुदा, गौड़ या सुपर नेचुरल पावर पर निर्भर ना हों, बल्कि ज्ञान विज्ञान और सरकार की नीतियों के द्वारा, अपनी तमाम बुनियादी समस्याओं के समाधान पर विचार करें।

     भारत के वामपंथी चाहते हैं कि भारत के संविधान के बुनियादी प्रावधानों का असली रूप में परिपालन हो, भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता पूर्ण रूप से अक्षुण्ण बनाई रखी जाये, संघवाद पर हमले न किए जाएं, केंद्रीय एजेंसियों का गैरकानूनी और मनमाना प्रयोग न किया जाए, उनकी स्वायत्तता और स्वतंत्रता कायम रखी जाए, भारत के निर्वाचन आयोग को एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार संस्था के रूप में स्थापित किया जाए और वह स्वतंत्र रूप से अपना काम करे, किसी पार्टी या नेता के साथ पक्षपात न करे। भारत के वामपंथी चाहते हैं कि तमाम तरह की शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थानों को जनहित में प्रयोग किया जाए और पूंजी पतियों द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर की जा रही तमाम लूट और मुनाफाखोरी पर तुरंत रोक लगाई जाए।

       भारत के वामपंथी चाहते हैं कि भारत की जनता की एकता तोड़ने के लिए किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रीयता या भाषावाद का खात्मा हो, जनता की एकता-अखंडता और आपसी भाईचारा बना रहे, वे सब आधुनिक किस्म के शिक्षित, धर्मनिरपेक्ष, जनवादी और समाजवादी सोच के नागरिक बनें। वे हिंदू मुस्लिम सिख इसाई, जातिवादी और सांप्रदायिक न बनें, बल्कि वे सब के सब आधुनिक भारतीय बनें। वे सब के सब समस्त भारतीयों के कल्याण में और विकास में विश्वास रखें और सहयोग करें।

      वामपंथी विचारधारा की ये कमाल की नीतियां हैं जिन पर भारत समेत दुनिया के हर अच्छे इंसान को गर्व है। वामपंथी विचारधारा भारत के नागरिकों समेत सारी दुनिया का समुचित विकास, सम्मान और कल्याण चाहती है। वह आपसी युद्धों का खात्मा चाहती है। वह पूरी दुनिया के देशों में आपसी सहयोग, समता, समानता, मित्रता, भाईचारा और सबका विकास चाहती है, तमाम तरह की अमानवीय प्रवृत्तियों,,,, जैसे लूट, झूठ, छल कपट, मक्कारी, शोषण, अन्याय, हिंसा, जुल्म, भ्रष्टाचार और बेईमानी का विनाश चाहती है। हम तो चाहते हैं कि “दुनिया के सारे देश और दुनिया के सारे लोग, वामपंथी विचारधारा और सोच से सरोबार हों, तभी आसमानी स्वर्ग को जमीन पर उतारकर, इस धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है।” इसके बाद भी अगर किसी को भी वामपंथी विचारधारा से नाराजगी और मुखालफत है तो हम तो यही कहेंगे कि ओह माय गॉड, वामपंथी विचारधारा से इतना खौफ क्यों? क्या वे पूरी दुनिया का विकास और कल्याण नही चाहते? मानव-कल्याणकारी वामपंथी विचारधारा से इतनी नाराजगी और डर कदापि उचित नहीं है।

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